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________________ आनन्द प्रवचन : भाग ८ रूप का जादू कितना भयंकर दुष्परिणाम लाता है ? इसके सुनने से रोमांच खड़े हो जाते । विशाल रोमन साम्राज्य के निर्माता सीजर महान् के समय में मिस्र देश पर 'क्लियोपेट्रा' नाम की अत्यन्त सुन्दरी रानी राज्य करती थी। सीजर महान् ने इस देश पर चढ़ाई करके इसे जीतने का विचार किया। लेकिन क्लियोपेट्रा रूपवती के साथ-साथ चालाक भी कम नहीं थी। उसने देखा कि रणभूमि में सीजर से लड़ना अपने विनाश को न्यौता देना है। अतः वह सीजर के पास जा पहँची । सीजर उसके रूपजाल में फंस गया - शत्रुरानी से प्रेम के कारण सीजर के सामन्त उसके विरोधी बन गए; सबने मिलकर सीजर को मार डाला। इसके बाद क्लियोपेट्रा ने रूप का जादू सीजर के प्रमुख सेनापति पर चलाया। वह भी इसके रूपजाल में फंस गया और एटोनी के हाथों मारा गया। इसके बाद एंटोनी भी उसके रूप की ज्वाला में भस्म हो गया। इन विशिष्ट वीरों की मृत्यु ने रोमन साम्राज्य की कमर तोड़ दी । धीरे-धीरे इस रूपासक्ति ने विशाल साम्राज्य को विनष्ट कर डाला। सचमुच कामिनियों के नेत्र बाण मनुष्य को आहत कर डालते हैं। नैनों के बाण कितने पैने और मारक होते हैं ? इसका ब्योरा रहीम के दोहे में पढ़िए रहिमन तीर का चोट से, चोट खाय बचि जाय । नैन बान की चोट से, धन्वन्तरि न बचाय ॥ ___ कीलर नाम की सुन्दरी के रूपपाश में फँसने के कारण इंगलैंड के विदेशमन्त्री प्रोफ्यूमो को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। इनकी प्रेमलीला की चर्चाएँ अखबारों में प्रकाशित हो चुकी थी। . इस प्रकार रूपमूढ़ों की कामासक्ति के कारण बड़े-बड़े राष्ट्र बदनाम और विनष्ट हुए हैं। राष्ट्र के उच्च उज्ज्वल संस्कार भी मिटते हैं। आजकल के अश्लील चलचित्रों ने युवकों ही नहीं, प्रौढ़ों और वृद्धों तक पर काम का जादू चला रखा है। अर्धनग्न युवतियों के नृत्य, गीत एवं रूप तथा अंगोपांगों के विन्यास को देख सुनकर क्या हमारे देश के नौनिहाल पतन के गर्त में पड़ने से बच सकते हैं ? सिनेमाओं से तो विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क और बुद्धि का दिवाला निकल गया है । परीक्षा के प्रश्नपत्रों में वे किसी बारे में पूछने पर प्रायः सिनेमाजगत के हीरो-हिरोइनों का नाम प्रस्तुत कर देते हैं । गनीमत है कि अभी महावीर नामक कोई अभिनेता नहीं है, अन्यथा महावीर के बारे में पूछने पर वे शायद वर्तमान विद्यार्थी उन्हें भी अभिनेता बना देते । रसलोलुपता भी कामोत्तेजना में सहायक रसलम्पटता भी कामवृद्धि में बहुत सहायक है । स्वाद के वशीभूत होकर मनुष्य कई बार गरिष्ठ, चटपटे, उत्तेजक खानपान से अपने जिह्वासंयम को छोड़ बैठता है । भोजन का भी जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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