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________________ होते मूढ नर कामपरायण ४१ अनेक घाटों का विद्वान था, व्यापारी था, अनेक देशों में भ्रमण भी कर चुका था । पानी पीकर ४० साल की उम्र में वह इस स्थिति पर पहुँच गया था कि अब जीवन में उसे जरा भी रस नहीं रहा । उसकी जिंदगी रूखी, कटु, मनहूस और विषाक्त बन गई थी । प्रकृति ने उसे अच्छा शरीर दिया था, लेकिन उसने सार-सम्भाल न करके इतनी लापरवाही से अपना जीवन बिताया कि ४० वर्ष में तो उसके बाल सफेद हो गये थे । वृद्धावस्था के सभी चिह्न उसके शरीर पर दिखाई दे रहे थे । उसके अध्ययन और देशाटन से जो ज्ञान उपार्जित किया था, वह जीवन में सच्चा उपयोगी नहीं हो सका । उसका मन अपने स्वार्थी विचारों में इतना तल्लीन हो गया था कि उसने क्या खाया पिया ? कौन से विषय का उपभोग किया ? क्लब में कौन-सा खेल खेला ? इनके सिवाय दूसरा कोई विचार उसके दिमाग में घुस नहीं सकता था ?" यह है विषयभोगी स्वार्थी जीवन का नीरस चित्र ! यही तो मूढ़ जीवन है, जो केवल विषयभोगों की ओर दौड़ लगाकर अपने उत्कृष्ट एवं बहुमूल्य देवदुर्लभ मानवजीवन को पशु-जीवन से भी गया-बीता बना लेता है । कामभोगों में कितना सुख, कितना दुःख ? कामी जीवन का एकमात्र उद्देश्य इन्द्रियविषयों में सुख की कल्पना करके उसी में डूबे रहना है । जैसे कुत्ता मुँह में हड्डियाँ चबाता है, तब उसे बहुत ही सुख महसूस होता है, वह समझता है कि हड्डी में से रस आ रहा है । परन्तु उस मूढ़ को यह पता नहीं होता कि वह रस तो चबाते समय उसके मुँह से निकले हुए खून का ही है, हड्डी का नहीं । इसी प्रकार इन्द्रियविषयी सांसारिक कामभोगों की तृप्ति में ही लगे रहते हैं । विषयास्वादन में उन्हें आनन्द आता है जिसका आभास वास्तव में उनके शरीर के निचुड़ जाने से उन्हें होता है । ऐसे लोग रात-दिन इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि उनके कानों में संगीत की मधुर स्वर लहरियाँ पड़ें, उनके नाक में चारों ओर से मादक सुगन्ध का ही प्रवेश हो, दुर्गन्ध का कहीं नामोनिशान न हो, उनकी जीभ सरस, स्वादिष्ट, चटपटे व्यंजनों का ही आस्वादन करती रहे, रूपवती सुन्दरियाँ उससे लिपटी रहें, उसकी आँखों के सामने सिर्फ उत्तमोत्तम कामोत्तेजक दृश्य आते रहें। इन्हीं विषयों की तृप्ति में वह संसार का सारा सुख मानता है । परन्तु इन्द्रियविषयों का अधिकाधिक उपभोग क्या उसे आनन्द दे सकता है ? क्या उसे विषयों का सहवास सुख प्रदान कर सकता है ! कदापि नहीं । अगर विषय सेवन में ही सुख होता तो दुनिया में सबसे अधिक सुखी विषयासक्त होते । परन्तु आज दुनिया में सबसे अधिक दुःखी, अशान्त एवं नीरस विषयभोगी कामी हैं । पाश्चात्य विचारक सेनेका ( Sencca ) कहता है - It sensuality were happiness beasts were happier than men, but human falicity is loged in the soul not is the flesh. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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