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________________ ४० आनन्द प्रवचन : भाग ८ को युद्ध विजय का पूरा भरोसा था। मेघनाद को आता देख श्रीराम पीछे हट गये और बोले-“लक्ष्मण ! मेघनाद के साथ तुम्हें ही युद्ध करना है।" अपार शक्तिशाली राम को पीछे क्यों हटना पड़ा और अकेले लक्ष्मण को ही क्यों उसका सामना करने भेजना पड़ा? इसका स्पष्टीकरण करते हुए राम ने ही कहा-“लक्ष्मण ! मेघनाद बारह वर्षों से तप कर रहा है, ब्रह्मचारी है और तुमने पिछले १४ वर्षों से स्त्री का मुँह तक नहीं देखा, मेरे साथ रहकर तपस्वी और संयमी जीवन बिताया है । इसलिए तुम ही मेघनाद को हरा सकते हो। मैं तो गृहस्थ हूँ।" सचमुच लक्ष्मण ही मेघनाद को हरा सके । मेघनाद का दूसरा नाम इन्द्रजीत भी था। जिसका तात्पर्य इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेने से है। स्पार्शनिवासियों के शरीर बहुत ही हृष्टपुष्ट और प्रभावशाली क्यों होते थे । वहाँ के एक प्रसिद्ध राजा लाइकरगस ने अपनी प्रजा की शारीरिक मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिए अपने राज्य में नियम बना दिया था कि कोई भी व्यक्ति शादी होने से पहले किसी भी युवती से प्रेमालाप नहीं कर सकता । विवाह की उम्र भी उसने निर्धारित कर दी थी। विवाह होने के बाद भी कोई परस्त्री या वेश्या से कामवासना की दृष्टि से सम्पर्क नहीं कर सकता था । यही कारण है कि स्पार्टीनिवासी कामवासना से बहुत ही बचे रह सके । उनके. शरीर सुडौल, स्वस्थ और हृष्टपुष्ट होते थे। बड़े-बड़े युद्धों में वे विजयी हुए । अन्ययोग व्यवच्छेद द्वात्रिंशिका में काम-भोग में आसक्ति के नतीजे बताये हैं "ब्रह्मा गुनशिरो हरिई शि सरुक् व्यालुप्तशिश्नो हरः । सूर्योऽप्युल्लिखितोऽनलोऽप्यखिलभुक् सोमः कलंकांकितः ।। स्वाथोऽपि विसंस्थुलः खलु वपुः संस्थैरुपस्थैः कृतः । सन्मार्गस्खलनाद् भवन्ति विपदः प्रायः प्रभूणामपि ॥" अर्थात्-कामान्ध होकर ब्रह्माजी ने अपना सिर कटवाया, विष्णु नेत्र रोगी बने, महादेवजी का शिश्नछेदन हुआ, सूर्य छीला गया, अग्नि सर्वभक्षी बना, चन्द्रमा सकलंक बना, तथा इन्द्र का शरीर सहस्रभगयुक्त बना। सच है, सन्मार्ग से गिर जाने पर चाहे कितने ही समर्थ व्यक्ति क्यों न हों, प्रायः विपद्ग्रस्त हो ही जाते हैं । एक पाश्चात्य विद्वान Bovee (बॉबी) ने ठीक ही कहा है'The body of a sensualist is the coffin of a dead soul.' विषयभोगी कामी का शरीर मुर्दे की पेटी के समान है। मि० पिटरसन नामक एक विद्वान ने लिखा है- 'मुझे कुछ महीनों पहले एक ४० वर्ष का आदमी मिला, जो चेहरे से ६० वर्ष का मालूम होता था। इसका कारण यह था कि वह जीवन में सभी तरह के विषयानन्द लूट कर अब विषयों से पूरी तरह ऊब चुका था। दुनिया में अब उसको किसी भी वस्तु में दिलचस्पी नहीं थी। उसने जिंदगी की सभी चीजों से रस लिया था, पर दिया कुछ भी नहीं। वह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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