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________________ होते मूढ नर कामपरायण धर्मप्रेमी बन्धुओ ! पिछले सूत्र में लुब्धजीवन की झांकी बताई गई थी। लोभी-मानव अर्थ के पीछे पड़कर अपना अमूल्य जीवन नष्ट कर देता है। आज मैं गौतमकुलक के दूसरे सूत्र (यानी प्रथम गाथा के दूसरे चरण) में दी हुई मूढ़ जीवन की झांकी प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसमें बताया है कि किस प्रकार एकमात्र काम के पीछे पड़कर मानव अपने अमूल्य .जीवन को बर्बाद कर देता है । काममढ़ : जीवन की समग्र शक्ति का नाशक मूढ़ मनुष्य वह है, जो अपने हिताहित को नहीं समझता और मोह में पड़कर अपने जीवन को शक्तिशाली बनाने के बदले बर्बाद कर देता है। मनुष्य का शरीर एक शक्ति-उत्पादक डायनेमो की तरह है। इसमें नित्य निरन्तर महत्वपूर्ण शक्तियों का उद्रेक होता रहता है। जब उन शक्तियों का अपव्यय रोककर उन्हें संग्रहीत कर लिया जाता है और उचित दिशा में लगा दिया जाता है तो महान् कार्य सम्पन्न होते हैं और जब इस शक्ति-उत्पादक शरीर को विषयभोगों या कामवासनाओं के छिद्रों से नष्ट कर दिया जाता है तो मनुष्य दीन-हीन, असहाय और परावलम्बी तथा पराधीन बन जाता है । अपना शक्तिधन लुटा देने के बाद मनुष्य का शरीर थोथा है, रीता है । पाश्चात्य विचारक Channing (चेनिंग) ने ठीक ही कहा है "Sensuality is the grave of the soul." -काम-भोगासक्ति आत्मा की कब्र है । सचमुच मानव कामशक्ति को उचित दशा में मोड़ने के बजाय, उसका विपरीत दिशा में प्रयोग करके शरीर का सर्वनाश कर लेता है । कामशक्ति का उचित दिशा में उपयोग जीवन शक्ति का एक चिह्न है । इस शक्ति को संचित रखकर उसका सदुपयोग करने से मनुष्य का जीवन प्रभावशाली और महत्वपूर्ण बनता है। जिस समय राम-रावण युद्ध का प्रथम दौर शुरू हुआ, उस समय रावण ने अपने सर्वोच्च सेनापति मेघनाद को ही सबसे पहले लड़ने भेजा। मेघनाद पर रावण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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