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३२ आनन्द प्रवचन : भाग ८
यह भय है कि लोभाविष्ट मनुष्य रातदिन आर्तध्यान और रौद्रध्यान से घिरा रहता है, धर्म की रुचि या धर्मध्यान की प्रवृत्ति उसमें प्रायः नहीं होती । इसलिए मर कर वह नरक या तिर्यञ्च गति में जाता है । जहाँ उसे भयंकर यातनायें मिलती हैं । वहाँ भी पाप और अधर्म का वातावरण रहता है । धर्म ध्यान की रुचि या प्रवृत्ति बिलकुल नहीं होती । इस प्रकार लोभाविष्ट मनुष्य इस जन्म में ही नहीं, अनेक जन्मों तक दुःख पाता रहता है। उसके जीवन में लोभ की दौड़ बहुत ही खतरनाक परिणाम लाती है ।
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टॉल्स्टॉय की एक कहानी मैंने पढ़ी थी । रूस के एक गाँव में साइमन नामक लोभी किसान को शैतान मिला। शैतान ने उससे पूछा - " मैं तुम पर प्रसन्न हूँ । बोलो, तुम्हें क्या चाहिए ?" उससे कहा - "मुझे बहुत अधिक जमीन चाहिए । देवदूत ने कहा - "हाँ, तुम्हें जमीन मिल जाएगी; शर्त यह है कि यह लाल निशान है । यहाँ से सुबह सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक तुम चलोगे, सूर्यास्त तक वापस यहीं पर लौट जाओगे तो उतनी जमीन तुम्हें मिल जाएगी ।" किसान की आँखों में चमक आई । इतनी जमीन मिल जाने की खुशी में उसने उस लाल निशान से दौड़ लगाई । मध्याह्न तक वह हांफता - हांफता करीब १० मील चला होगा । उसने सोचा अभी तो १० मील और जमीन नाप लूं, तब वहाँ से वापस लौटूंगा । मुझे इतनी लम्बी चौड़ी जमीन मिल जाएगी कि कई पीढ़ियों तक के लिए वह जमीन काफी होगी । फलतः वह १० मील और गया, तब वहाँ से वापस लौटा। वापस करीब १५ मील लौटकर आया, इतने में तो वह बहुत हाँफने लगा, थककर चूर-चूर हो गया । उसके पैर लड़-. खड़ाने लगे । फिर भी लोभ से प्रेरित था । इसलिए थोड़ा-सा विश्राम लेकर फिर दौड़ा । इधर सूर्य डूबने को था । तब तक वह लक्ष्य से ५ मील दूर रह गया था । अब उसके पैरों ने आगे चलने से जवाब दे दिया । वह धड़ाम से वहीं गिर पड़ा और गिरते ही एक मिनट में उसके प्राण पखेरू उड़ गए। शैतान उसे देखकर हंस रहा था । टॉल्स्टॉय कहानी का अन्त करते हुए प्रश्न करता है-उस लोभी किसान को कितनी जमीन चाहिए थी ? सिर्फ ३ || गज भूमि ही उसकी कब्र या उसके शयन के लिए पर्याप्त थी । मगर उसको लोभ लगा था अनाप - सनाप भूमि पाने का, जिसका नतीजा हुआ — उसकी मृत्यु |
हाँ तो, लोभी की तीनों मनोवृत्तियाँ अर्थ-परायण होने से निकृष्ट एवं हेय जीवन की प्रतीक हैं ।
लाभ से लोभ की वृद्धि
बहुत-सी बार मनुष्य यह सोचता है कि इतना धन प्राप्त हो जाय फिर सन्तोष धारण कर लूंगा; परन्तु यह देखा गया है कि जितना - जितना लाभ होता है, उतना - "उतना लोभ बढ़ता जाता है । लोभी मनुष्य अनेक कष्टों को सहता है, धन प्राप्त करने
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