________________
लोभी होते अर्थपरायण ३३ के लिए अपने प्राणों को भी झौंक देता है । कुवलयमाला में इस सम्बन्ध में एक सुन्दर दृष्टान्त मिलता है
तक्षशिलानगरी के दक्षिण पश्चिम में बसे उच्च स्थल ग्राम का निवासी लोभदेव 'यथा नाम तथा गुण' वाला था। उसके पास पिता के द्वारा उपार्जित किया हुआ बहुत धन था। पिता की छत्रछाया में उसका जीवन सुख से व्यतीत हो रहा था। उसे किसी चीज का अभाव या कष्ट नहीं था। फिर भी उसकी लोभी वृत्ति बहुत ही बढ़ी-चढ़ी थी। उसी लोभ-वृत्ति से प्रेरित होकर वह झूठ, कपट, धोखेबाजी आदि करके लोगों से येन-केन-प्रकारेण धन हरण करने में तत्पर रहता था। इसलिए लोग उसे धनदेव के नाम से न पुकार कर लोभदेव के नाम से पुकारते थे। इसी नाम से वह प्रसिद्ध हो गया था।
एक दिन लोभदेव ने लोभवृत्ति से प्रेरित होकर धनोपार्जन हेतु अपने पिता से विदेशगमन की अनुमति मांगी। पिता ने उसे समझाया- "बेटा ! अपने यहाँ क्या कमी है, जो तू विदेश कमाने के लिए जा रहा है। अपने घर में इतना धन है कि सात पीढ़ियों तक भी समाप्त नहीं होगा। घर में सुख से रहो, दान-पुण्य आदि शुभकार्य करते रहो।"
_लेकिन लोभदेव के सिर पर तो लोभ का भूत सवार था। इसलिए पिता की सच्ची सीख कैसे मान लेता ? अतः उसने विदेश जाने की हठ पकड़ ली। अनिच्छा से पिता सहमत हो गए। लोभदेव सार्थ लेकर विदेश यात्रा के लिए चल पड़ा। वह वहाँ से सोपारकपुर पहुँचा। वहाँ पिता के मित्र भद्र सेठ के यहाँ ठहरा । यहाँ व्यापार में अच्छा लाभ भी हुआ। किन्तु लाभ होने के साथ सन्तोष होना तो दूर रहा, उलटे अधिकाधिक लोभ बढ़ता गया। शास्त्र में मानवमन की सूक्ष्मवृत्ति का निदर्शन दिया है
"जहा लाहो, तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढइ" _ 'ज्यों ज्यों लाभ होता है, त्यों-त्यों लोभ होता जाता है । लाभ से लोभ सतत बढ़ता ही जाता है।'
यही दशा लोभदेव की थी। उसके मन में और अधिक धन प्राप्ति की लालसा जगी । सोपारकपुर के व्यापारियों से जब उसने रत्नद्वीप की समृद्धि की बात सुनी तो उसके मुंह में पानी भर आया। उसने रत्नद्वीप जाने की ठान ली। भद्रसेठ को आधे लाभ का साझीदार बनाकर वाहनों में उसने माल भर लिया और मार्ग के कष्टों की परवाह न करके वह रत्नद्वीप की ओर चल दिया।
सच है, धनलोलुप व्यक्ति समुद्र के अथाह जल में कूदने से भी नहीं हिचकिचाता; चाहे वहाँ उसे कुछ भी न मिले, उसका मुंह नमक के खारेपन से ही भर जाय ।
रत्नद्वीप में लोभदेव और भद्रसेठ ने व्यापार में काफी धन कमाया। वहाँ से अपने वाहन भर कर दोनों वापस सोपारकपुर की ओर चल पड़े। लोभ की साक्षात्
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org