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________________ ३९८ आनन्द प्रवचन : भाग ८ पड़ते ही वह फट जाता है, वैसे ही व्यक्ति में कितने ही गुण हों, अगर उसमें माया है, दम्भ है, कुटिलता है, बेवफादारी है, बेईमानी और धोखेबाजी है तो लोग उससे कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहेंगे । लोगों में वह घृणापात्र बन जाएगा। __ एक जगह एक बोडिंग में एक भाई व्यवस्थापक थे। बोडिंग की व्यवस्था के साथ-साथ वे विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षण भी देते थे। बाह्यदृष्टि से धर्मात्मा दिखाई देनेवाले इन भाई के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बोडिंग के संचालकों ने भवन-निर्माण का काम इन्हें सौंपा। अब क्या था, व्यवस्थापकजी के मन में रमने वाली मायावृत्ति अब सामने आई। व्यवस्थापक जी आधी धन राशि भवन-निर्माण में लगाते और आधी स्वयं हड़प जाते । कुछ ही समय में व्यवस्थापक जी का एक निजी भव्य भवन भी तैयार हो गया । उनकी धर्म पत्नी के शरीर पर गहने भी बढ़ने लगे। दूसरे अध्यापक विचार में पड़ गए कि व्यवस्थापक जी को प्रतिमास दो सौ रुपये वेतन मिलता है, इसमें इन्होंने इतनी बचत कैसे कर ली ? हम तो इस मँहगाई में कुछ भी बचा नहीं पाते । एक बार वे पर्युषण पर्व के अवसर पर दूसरे गाँव में, जहाँ किसी साधु-साध्वी का चौमासा न था, व्याख्यान बांचने गए । पीछे से उनके पाप का घड़ा फूटा। बात यह हुई कि उन्हीं दिनों में सरकारी ऑडिटर बोडिंग एवं मकान के हिसाब-किताब की जाँच करने आए। उन्होंने हिसाब माँगा तो सेक्रेटरी ने जैसा भी हिसाब लिखा हुआ था, प्रस्तुत कर दिया । ऑडिटर ने जब सारा हिसाब चेकिंग किया तो लगभग बीस हजार रुपयों का घोटाला पकड़ा गया। व्यवस्थापक जी की सारी माया पकड़ी गई और उन्हें भारी सजा भुगतनी पड़ी। यह है, माया युक्त जीवन का खोखलापन ! इसी कारण तो वह भयावह है। माया शल्य : अत्यन्त पीड़ादायक शास्त्रों में माया को शल्य कहा है। शल्य कहते हैं-तीखे काँटे का। अगर आपके पैर में कभी कोई तीखा कांटा चुभ जाए तो आपको कितनी पीड़ा महसूस होती है ? आप दर्द के मारे बेचैन हो उठते हैं। इसी प्रकार जिसके जीवन में या चरण (चारित्र) में मायारूपी तीखा कांटा घुस जाय तो उसका निकालना बड़ा दुष्कर हो जाता है और जब तक वह कांटा निकलता नहीं तब तक उस व्यक्ति को चैन नहीं पड़ा । तीखा कांटा तो झटपट निकाल दिया जाता है और व्यक्ति को आराम भी हो जाता है, लेकिन माया शल्य कई बार इतना गहरा घुस जाता है, कि एक जन्म में ही नहीं, जन्म जन्मान्तर में जाकर निकलता है, तभी शान्ति मिलती है। माया का जहरीला तीखा कांटा एक बार घुस जाता है तो मन को बार-बार कचोटता रहता है। ज्ञाता सूत्र में बताया गया है, धर्म के विषय में जरा-सी भी माया-सूक्ष्म माया भी अनर्थकर होती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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