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माया : भय की खान
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- . न्याय भी धर्म का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। उस विषय में जरा-सी माया अनजाने में आज से कोई ३० वर्ष पहले न्यायाधीश श्री बी० एच० गेहानी से हो गई थी, जिस समय वे हैदराबाद सिन्ध के मजिस्ट्रेट थे। बात यह हुई कि मजिस्ट्रेट के समक्ष एक भाई का दूसरे भाई के विरुद्ध धोखाधड़ी का मामला पेश था। झगड़ा जायदाद के बारे में था। निर्णय का दिन आ गया था, मगर किसी कारणवश मजिस्ट्रेट फैसला नहीं लिख पाया था। मजिस्ट्रेट को अगली तारीख देनी ही थी। मगर संयोग से उस दिन अभियुक्त कचहरी में न आ सका। उसके बजाय उसका पुत्र हाजिर हुआ। जो पिता की बीमारी का सर्टिफिकेट लेकर यह प्रार्थना करने आया था कि अदालत अगली कोई तारीख दे दे। मजिस्ट्रेट ने तारीख तो दे दी, मगर यह बताने का साहस न कर सका कि वह खुद भी फैसला नहीं लिख पाया है। किस्मत की मार कहिए, अभियुक्त अदालत के कार्य व्यवहार से भली-भाँति परिचित था। उसे भली-भाँति मालूम था कि फौजदारी मामलों में अभियुक्त को बरी करना हो तो फैसला उसकी गैर हाजरी में भी सुनाया जा सकता है, किन्तु सजा देनी हो तो अभियुक्त उपस्थित होना चाहिए। अभियुक्त के पुत्र ने जब यह खबर दी कि मजिस्ट्रेट ने अगली तारीख दे दी है, तो उसने झट निष्कर्ष निकाल लिया कि अब मुझे जेल जाना ही पड़ेगा। वह मूच्छित हो गया और उसी सदमें में चल बसा । अगली तारीख की पेशी पर रोते हुए उसके पुत्र ने मजिस्ट्रेट को बताया कि फैसले की तारीख आगे पड़ने की बात सुनते ही पिताजी उसी सदमे में चल बसे । मजिस्ट्रेट गेहानी के दिल को बहुत ठेस पहुंची। उसकी फैसले के बारे में असावधानी से हुई जरा सी माया से एक आदमी का देहान्त हो गया, यह मजिस्ट्रेट को खटकता रहता था। हालांकि मजिस्ट्रेट ने जो फैसला लिख रहा था, उसमें अभियुक्त को बरी कर रखा था। फैसला (उसके पुत्र को) सुनाते समय भी मजिस्ट्रेट की आँखों में आँसू थे। उसके बाद लगभग २५ वर्ष तक अपने द्वारा की गई यह सूक्ष्म माया कांटे की तरह खटकती रही । बम्बई के चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट के पद पर रहते हुए सन् ७० में उन्होंने एक सिन्धी साप्ताहिक में अपने से अनजाने में बेकसूर व्यक्ति की मौत का कारण बनने के पाप (माया) को प्रकाशित करके अपने दिल का बोझ हल का किया।
इसी तरह किसी भी धर्माचरण, व्रत, नियम आदि में माया शल्य की तरह खटकती है।
माया : मित्रतानाशक माया इसलिए भी भयावह है कि वह मित्रता का खात्मा करने वाली है । दशवकालिक सूत्र में स्पष्ट कहा है
'माया मित्ताणि नासेइ' माया मित्रों की मित्रता का नाश कर देती है।
जहाँ मित्रों के बीच में माया होगी, किसी भी मित्र के दिल में कपट आसन जमा लेगा, वहाँ उनकी मित्रता टिक न सकेगी। प्रायः देखा गया है कि एक मित्र
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