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________________ .. अहिंसा : अमृत की सरिता ३४६ गुरुदेव से चौमासा करने की प्रार्थना की । गुरुदेव ने भी लाभ जानकर वहाँ चौमासा किया। चातुर्मास में राजा ने अपने समस्त राज्य में अमारिपटह बजवाकर जीव हिंसा न करने की घोषणा कराई। प्रतिदिन गुरुदेव के व्याख्यान सुनने से भीमराजा को संसार से विरक्ति हो गई। चातुर्मास पूर्ण होने के बाद भीमराजा ने गुरुदेव से भागवती दीक्षा ले ली। अब वे गुरुदेव के साथ बिहार करने लगे। निरतिचार चारित्र-पालन करते हुए एक दिन उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। अनेक जीवों को प्रतिबोध देते हुए भीममुनि क्रमशः मुक्ति पहुंचे। ___ यह है दयामृत का चमत्कार ! दयामृत अहिंसामृत का ही व्यक्त रूप है। इसके प्रभाव से भीमकुमार अनेक संकटों से पार हो गए। दयामाता के प्रताप से उन्हें अनेक जीवों का आशीर्वाद और सहयोग मिला। यद्यपि उनकी दयावृत्ति की अनेक बार कसौटी तो हुई, परन्तु वे अन्त तक अपने अहिंसावत पर डटे रहे । अमृतयोग की साधना - अहिंसा अमृत है, इसका अनुभव तो आपको हो ही जाता है, परन्तु इस अमृतयोग की अगर उच्च साधना की जाए तो उसके प्रभाव से मनुष्य ही नहीं, पशुपक्षी आदि प्राणी ही नहीं, प्रकृति जगत् के कण-कण में परिवर्तन हो जाता है। ऐसा अहिंसा-मृत का साधक जहाँ कहीं भी रहता है, वहाँ उसके सान्निध्य में रहने वाले प्राणी तो अपना पारस्परिक वैर-विरोध भूल ही जाते हैं, किन्तु आसपास की पृथ्वी वनराजि सुगन्धित, हरी-भरी और समृद्ध हो जाती है, वहाँ का जल, वायु और वातावरण सुगन्धित हो जाता है, उसकी साधना में सारी प्रकृति सहायक हो जाती है। इसीलिए गौतम ऋषि ने कहा है __ "अमयं कि अहिंसा।" अमृत क्या है, अहिंसा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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