SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४८ आनन्द प्रवचन : भाग ८ फिराने लगा । इस पर सिंह उस मनुष्य को वहीं छोड़कर अदृश्य हो गया । यह कुमार अहिंसा व्रत की परीक्षा थी, जिसमें वह उत्तीर्ण हो गया । कुछ ही देर बाद वही सिंह रूप धारी देव (राक्षस) ने अपने असली रूप में प्रकट होकर कुमार से वरदान माँगने को कहा । दयालुकुमार ने उससे कहा - "इस नगर को पुनः बसाओ और आगे के लिए किसी के प्रति वैर मत रखो।" राक्षस ने वैसा ही कर दिया । इतने में एक चारणमुनि आकाशमार्ग से होकर उस नगर में पधारे। सभी लोग राजा, मंत्री, कुमार, राक्षस तथा नागरिक आदि उनके वन्दनार्थ गए। मुनि ने अपने धर्मोपदेश में क्रोध का स्वरूप एवं दुष्परिणाम बता कर क्रोध न करने को कहा । इस पर उस राक्षस ने मुनि से कहा - " भगवन् ! मैंने इस कुमार के अहिंसामृत से सने वचन सुनकर इसे वचन दे दिया है कि मैं आज से इस नगर के राजा तथा समस्त प्रजा के प्रति क्रोध छोड़ता हूँ ।" उस नगर के राजा हेमरथ ने अपने उपकारी राजकुमार भीम को अपनी कन्या मदालसा अति आग्रह करके ब्याह दी। इतने में कालिका देवी कापालिक सहित विमान में बैठकर वहाँ आई । कुमार को प्रणाम करके कहने लगी - " भीमकुमार ! लो यह मेरा नवरत्नमय हार, इसके प्रभाव से आप तीन खण्ड के अधिपति बन जाएँगे तथा इससे आकाश गमन भी आप कर सकेंगे। सभी राजा आपकी आज्ञा में रहेंगे । इसके पश्चात् देवी ने भीमकुमार को उसके वियोग से व्याकुल माता-पिता से शीघ्र मिलने का अनुरोध किया। अतः वह हेमरथ राजा से अनुमति लेकर अपनी पत्नी तथा मंत्रिपुत्र (मित्र) सहित अपने नगर की ओर रवाना हुआ । इधर राजकुमार भीम के पिता हरिवाहन नृप भी खूब करने आए। मंत्रीपुत्र ने अथ से इति तक सारी बातें राजपरिवार को भीमकुमार के मिलन से बहुत आनन्द हुआ । धूमधाम से उसका स्वागत राजा को कह सुनाईं। सभी एक दिन राजा हरिवाहन ने अपने राजकुमार भीम को राजगद्दी पर बिठाकर गुरुदेव से भागवती दीक्षा ग्रहण कर ली । अब भीम राजा सुखपूर्वक प्रजा पालन करने लगे । क्रमशः वे त्रिखण्डाधिपति बने । एक बार चार ज्ञान के धारक श्री क्षमासागर आचार्य अनेक मुनिमण्डल सहित नगर में पधारे। सहस्राम्रवन में विराजे । भीमराजा भी राजपरिवार सहित उनके वन्दनार्थ गया । धर्म देशना सुनी । तत्पश्चात् भीमराजा ने आचार्यश्री से पूछा - भगवन् ! मैंने पूर्वजन्म में कौन से पुण्य किये थे जिनसे मैंने इतने सुख पाए ?" आचार्यश्री ने भीमराजा के पूर्व भव का वृत्तान्त कह सुनाया और अन्त में कहा - भीमनरेश ! जैसे आपने पूर्वजन्म में वन में लगे दावानल में जलते हुए सांप पर दया लाकर और उसे प्राणों की बाजी लगाकर दावानल से बाहर निकाला था, उसी प्रकार वर्तमान जन्म में भी तुम दया का पालन तथा हिंसा का त्याग करना । " यह सुन भीमराजा को ऊहापोह करते-करते जातिस्मरणज्ञान हो गया, जिसके प्रकाश में उन्होंने अपना पूर्वजन्म देखा । गुरुदेव के प्रति श्रद्धाभक्ति दृढ़ हुई । अतः एक दिन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy