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________________ ३४६ आनन्द प्रवचन : भाग ८ है। अतः आज से किसी भी निरपराध जीव की हिंसा मत करना शिकार आदि दुर्व्यसन छोड़ देना।" गुरुदेव के वचन श्रद्धापूर्वक शिरोधार्य करके भीमकुमार ने सम्यक्त्व सहित प्रथम अहिंसा-अणुव्रत स्वीकार किया। आचार्य प्रवर ने भीमकुमार को धन्यवाद देते हुए कहा-"देखना, तुमने जो स्थूल प्राणातिपात विरमणव्रत लिया है, उस पर दृढ़ रहना।" भीम आचार्य का वचन शिरोधार्य करके राजा आदि के साथ अपने स्थान पर लौटा। . एक दिन भीमकुमार अपने मित्र मतिसागर के साथ खेल रहा था, इतने में एक कापालिक आया। वह आशीर्वाद देकर भीम से एकान्त में कहने लगा"राजकुमार ! आप परोपकारी एवं दयालु हैं। मैंने भुवनक्षोभिणी नामक विद्या का पूर्वार्द्ध तो, 12 वर्ष में सिद्ध कर लिया है, उत्तरार्द्ध सिद्ध करने हेतु मुझे काली चौदस को श्मशान में जाना है, उस समय आप जैसे उत्साही मेरे उत्तर साधक बनें तो मेरी विद्या सिद्ध हो जाए।" परोपकार समझ कर कुमार ने उसकी बात मानली । काली चौदस में अभी 10 दिन बाकी थे, तब तक वह राजकुमार के साथ ही रहा । मित्र ने बहुत मना किया कि इस पाखण्डी एवं दुर्जन की संगति अनर्थकर है, फिर भी वचनबद्ध राजकुमार उस कापालिक को छोड़ न सका। काली चौदस के दिन उसके साथ वह श्मशान में गया। कापालिक मण्डल बना कर किसी देव का स्मरण करके भीम का शिखा बेध करने लगा। परन्तु राजकुमार सावधान होकर हाथ में नंगी तलवार लिए खड़ा हो गया। यों दाल गलती न देख कापालिक ने अपना विशाल भयंकर रूप बनाया और क्रोध से गरजता हुआ बोला-"अरे भीम ! या तो तू अपने आप अपना मस्तक दे दे, नहीं तो मैं अपने पराक्रम से ले लूंगा।" परन्तु भीम ने उसकी एक भी चाल न चलने दी। आखिर कापालिक ने भीम को पकड कर आकाश में उछाला, किन्तु वहां से गिरते समय कमला नाम की यक्षिणी ने उसे हाथों में झेल लिया । वह उसे अपने रत्नजटित भवन में ले गई, सिंहासन पर बिठाया। फिर वर मांगने के लिए कहा तो कुमार ने कहा - "मेरे तो जिनेश्वर देव का शरण है, वही सर्वस्व है। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।" यक्षिणी ने भी जिनेश्वर देव का शरण स्वीकार किया। यह बातचीत हो रही थी, इतने में सहसा मधुर ध्वनि सुनाई दी। भीम ने पूछा-यह आवाज कहाँ से आ रही है ? यक्षिणी ने कहा-एक साधु यहाँ चौमासा करके उपवास सहित विराजमान हैं, वे स्वाध्याय कर रहे हैं, उसी की यह आवाज है ।" भीम ने उनके दर्शन-वन्दन करने की इच्छा प्रगट की अतः यक्षिणी उसे मुनि के पास ले गई । वहाँ दोनों स्वाध्याय श्रवण में लीन हो गए। इतने में आकाश से एक भुजा उत्तरती दिखाई दी, वह भीम-के पास आकर गिरी और उसकी तलवार लेकर चलने लगी, भीम कुतूहलवश उस भुजा को नमा कर उस पर चढ़ गया । भुजा ने उसे आकाश मार्ग से अनेक पर्वत नदी वन लांघती हुई कालिका मन्दिर के पास ले जा कर उतारा । विकराल रक्त, मांस, हड्डी, नरमुण्ड वहाँ बिखरे हुए थे। काली की भयंकर मूर्ति के आगे वही दुष्ट कापालिक बैठा था, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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