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आनन्द प्रवचन : भाग ८
में अहिंसा अमृत हो, तभी ये तीनों अमृत रूप हो सकते हैं, यदि अहिंसा इन तीनों में से एक में भी न हो; न वाणी में अहिंसा हो, न मन में अहिंसा हो और न हाथ (काया) में अहिंसा हो तो ये तीनों कभी अमृतमय नहीं हो सकते, ये तीनों ही उस स्थिति में विषमय बन जाएँगे । इसलिए मानना चाहिए कि वाचामृत, दानामृत या दयामृत, ये तीनों अहिंसामृत के ही रूप हैं, या अहिंसामृत की ही संतान हैं; अहिंसा ही इन तीनों को अमृतपान कराने वाली जननी है। अहिंसा : वाचामृत के रूप में
जब अहिंसा वाणी में आ जाएगी, तब वाणी में से अमृत झरने लगेगा। तब जो भी बोला जाएगा, मधुर बोला जाएगा, प्रेम और आत्मीयतापूर्वक बोला जाएगा। उस वाणी में क्रोध, अभिमान, कपट, राग-द्वेष, वैर-विरोध या ईर्ष्या का विष घुला हुआ नहीं होगा और न ही उसमें किसी को खुश करने या अपना मतलब गांठने के लिए चिकनी-चुपड़ी मीठी-मीठी बातें होंगी, जो राग और मोह से प्रेरित हों, या माया से अनुप्राणित हों, चापलूसी और खुशामदी के रंग से रंगी हुई हों। इस प्रकार वाचामृत में न किसी के प्रति कर्कश, कठोर अपशब्द या गाली के शब्द होंगे, न किसी के प्रति ताने होंगे। जिसकी वाणी में अहिंसा का अमृत प्रवाह हिलोरे ले रहा होगा, वह अपनी वाणी से कोई भी छिछोरापन का, गंदा या आक्षेपात्मक शब्द नहीं निकालेगा और न ही किसी के प्रति मिथ्या दोषारोप करेगा। वह अपनी वाणी पर अहिंसा का नियंत्रण, संयम का विवेक और तपरूप में मौन को स्वीकार कर लेगा; परन्तु अपनी वाणी से कदापि गंदे और हलके शब्द नहीं निकालेगा; नहीं असत्यवचन या धोखा देनेवाले, सन्देहास्पद, या द्वयर्थक वचनों का प्रयोग करेगा। आजकल राजनीतिज्ञों तथा कूटनीतिज्ञों की भाषा में स्वार्थ से सनी सभ्यता का पुट मिला रहता है । वे अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तर्ज बदलते रहेंगे। परिवार में उनके बोलने की सभ्यता अलग होगी, मित्रों में पृथक् होगी। समाज के लोगों या सभा सोसाइटियों में उनकी वाणी का रूप अलग होगा। यह बहुरूपियापन वाणी के अमृत को नष्ट कर देता है । यह स्वयं के जीवन को भी नष्टभ्रष्ट कर देता है । इसलिए जहाँ वाचामृत होगा, वहाँ अहिंसा का जागृत पहरा होगा।
अहिंसा का अमृत वाचामृत के रूप में जब प्रगट होगा, तब दीन-दुखियों पीड़ितों, पददलितों एवं पिछड़े लोगों के प्रति स्नेह, सहानुभूति, आत्मीयता और सद्भावना से परिपूर्ण होगा। किसी के लिए अपमानजनक या क्षोभजनक वचन तो प्रकट होगा ही नहीं। यही वाचामृत की विशेषता है। बल्कि वाचामृत की संजीवनी बूटी के द्वारा वह दुःखितों एवं पीड़ितों को आश्वासन देकर उनकी व्याधि और आधि को दूर करने का प्रयत्न करेगा। परस्पर बढ़े हुए विरोध, मनमुटाव, द्वेष, रोष या कलह को वाणी का मधुर अमृत छींट कर ही शान्त किया जा सकता है। वाणी में अहिंसा का अमृत विरोधी से विरोधी चोर, जुआरी, दुष्ट, हत्यारे आदि का हृदय परिवर्तन करने में समर्थ है।
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