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________________ ३३८ आनन्द प्रवचन : भाग ८ सारभूत अहिंसा ही अमृत है, वही सच्चा अमरत्व प्रदान करती है । अगर आप सच्ची अमरता चाहते हैं तो आज से ही अहिंसामृत की साधना में संलग्न हो जाएँ । ज्योंज्यों आपकी अहिंसा-साधना परिपक्व होती जाएगी, आप अमरत्व की ओर बढ़ते जायेंगे ?" महामन्त्री की बात सुनकर सम्राट एक क्षण कुछ सोचकर बोले – “तब इस अमृत का क्या किया जाए ?" महामन्त्री - " इसे ढोल दीजिए महाराज !" इस बार विरोध में एक भी स्वर सभा में से नहीं उठा । सम्राट ने सच्चा अमरत्व प्राप्त करने से उसी समय अहिंसामृत की साधना करने का संकल्प किया और अपने हाथ से वह अमृत वहीं का वहीं ढोल दिया ।" बन्धुओ ! आप भी सच्चे अमरत्व समझ गये होंगे । एक पाश्चात्य विद्वान हेजलिट को ढूंढिए - को } प्राप्त करने के उपाय के सम्बन्ध में ( Haslitt) के शब्दों में अहिंसामृत "A gentle word a kind look a good-natured smile can work wonders and accomplish miracles." "एक नम्र शब्द, एक दयापूर्ण दृष्टि, एक अच्छे स्वभाव की मुस्कराहट आश्चर्य पैदा कर सकती है, और चमत्कार की पूर्ति कर सकती है ।" Jain Education International अहिंसा भूतल की अमृतसरिता क्यों और कैसे ? प्रश्न होता है, अहिंसा ही अमृत क्यों ? क्या अन्य कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो वास्तविक अमृत बन सके । उत्तर में निवेदन है कि अहिंसा, सेवा, दया, सहानुभूति प्रेम, वात्सल्य, करुणा, अनुकम्पा, क्षमा, दान आदि अनेक कोमल भावनाओं को लिए हुए हैं और अमृत का काम केवल कोमल भावनाएँ ही कर सकती हैं। अहिंसा के पालन में मानव अपने आपको विश्व के प्राणियों में विलीन कर देता है, उसमें 'मैं' व 'तू' का द्वैतभाव नहीं रहता; दूसरे की पीड़ा की अनुभूति अहिंसक को होने लगती है | अहिंसक दूसरों के दुःखों को देखकर रह नहीं सकता । वह भरसक प्रयत्न करता है, दूसरों के दुःखों को दूर करने की; इसीलिए मानव जीवन में अहिंसा को प्रतिष्ठित करना आवश्यक माना गया है । जहाँ चारों ओर मारकाट मच रही हो, लोग परस्पर एक दूसरे के खून की होली खेल रहे हों, दुष्ट, उद्दण्ड या अत्याचारी हो गए हों और अपनी उद्दण्डता पर उतरे हुए हों, जहाँ व्यक्ति के जीवन में नाना प्रकार के अपराध प्रविष्ट हो गये हों, जहाँ रोग, शोक और चिन्ताओं के दुःख से मानव कराह रहा हो, वहाँ अहिंसा के सिवाय ऐसा कौन-सा अमृत है, जिससे ये सारी समस्याएँ हल होकर शक्ति, सुख, आनन्द और प्रेम का स्वर्गेपम वातावरण बनाया जा सकता हो ? अहिंसा ही इन सबका एकमात्र हल है । सत्य, ब्रह्मचर्य अस्तेय या सारी समस्याएँ हल नहीं हो सकतीं। मनुष्य अहिंसा के अमृत का मेरी दृष्टि में अपरिग्रह से ये पान करके ही For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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