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आनन्द प्रवचन : भाग ८
लथपथ है ।" श्रीकृष्ण ने उनसे कहा-पिशाच भयंकर नहीं होता, बशर्ते कि हम उसे बल दें । तुमने जैसे-जैसे उस पर रोष किया, उसका बल बढ़ता गया, तुम्हारा बल कम होता गया। मैंने उस पर तनिक भी रोष नहीं किया तो वह मेरे सामने अत्यन्त निर्बल होकर हार गया । तात्पर्य यह है कि क्रोधी के प्रति क्रोध करने से उसका बल बढ़ता जायेगा, आपका घटता जायेगा। अतः आप अपने जीवन में क्रोध मत करिये, इससे आपका बल बढ़ेगा । गौतम-महर्षि ने इसीलिए कहा है
कोहो, विसं किं ? क्रोध विष है, उससे दूर रहो।
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