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________________ क्रोध से बढ़कर विष नहीं ? ३२६ जायेगा। क्रोधी के प्रति क्रोध करने से क्रोधी का बल बढ़ जाता है । जैसे शत्रु हमारा बल हरण कर लेता है, वैसे, क्रोधरूपी शत्रु भी हमारा बल क्षीण कर देता है । माघ कवि ने कहा है 'क्रोधो हि शत्रुः प्रथमं नराणाम् ।' 'क्रोध मनुष्यों का सबसे पहला शत्रु है ।' क्रोधी के प्रति क्रोध करके अपना बल मत घटाओ कई लोग क्रोधी के क्रोध को देखकर सोचने लगते हैं कि मैं क्या इससे कम हूँ, या कमजोर हूँ ? इसकी गाली सहन कर लूं यह मुझ से कैसे हो सकता है ? परन्तु ऐसा करने से क्रोधी का बल बढ़ता है, क्रोधी के प्रति क्रोध करने या गाली देने वाले का बल घटता है। एक बार श्रीकृष्ण, बलदेव, सत्यक और दारुक चारों वन में घूमते-घूमते बहुत दूर निकल गये। वहाँ उन्हें रात हो गयी। घर वापस लौटने का मौका नहीं था। उन्होंने निश्चय किया-आज रात को किसी पेड़ के नीचे बितायेंगे, पर हममें से एक व्यक्ति बारी-बारी से जागता रहे, ताकि कोई उपद्रव हो तो शान्त किया जा सके । सर्वप्रथम दारुक की बारी थी। इसलिए वह अपने पहरे पर बैठ गया, बाकी तीनों सो गये । कुछ ही देर बाद एक पिशाच आया, वह बोला-"मुझे बड़ी जोर की भूख लगी है, इसलिए इन तीनों को खा लेने दे।" दारुक-"यह कैसे हो सकता है । मैं इनकी रक्षा के लिए तैनात हूँ। मेरे रहते तुम इन्हें नहीं खा सकते। इस पर पिशाच दारुक से भिड़ गया। दोनों में रस्साकस्सी होने लगी। ज्यों-ज्यों दारुक का रोष बढ़ता जाता, त्यों-त्यों पिशाच का बल बढ़ता जाता। अतः दारुक पिशाच को परास्त न कर सका। इतने में तो उसका समय पूरा हो गया। अब बारी थी-सत्यक की। वह जब पहरे पर बैठा, तब फिर वह पिशाच आया और उसी तरह अपनी बात दोहरा कर सत्यक से लड़ने लगा। सत्यक ने भी ज्यों-ज्यों पिशाच के प्रति क्रोध प्रगट किया, त्यों-त्यों उसका बल कम हो गया, पिशाच का बल बढ़ गया। अब सत्यक के सो जाने के बाद बलदेव की बारी थी। बलदेव भी अत्यन्त रोष में आकर पिशाच से भिड़ गया, परन्तु दारुक की तरह वह भी थोड़ी देर में हाँफने लगे, थककर चूर हो गये। वह भी पिशाच को परास्त न कर सके, क्योंकि गुस्सा करने से पिशाच का बल बढ़ जाता। अब श्रीकृष्णजी का नम्बर था। वे पहले तो शान्त खड़े हो गये। पिशाच का जोश भरा रोष ज्यों-ज्यों बढ़ता गया, श्रीकृष्ण शान्ति से उसे कहते रहे-शाबाश ! तू बड़ा वीर है । तेरी माता धन्य है, जिसने ऐसा वीरपुत्र पैदा किया।" इस तरह शान्त रहने से पिशाच का बल घटता गया । आखिर वह इतना निर्बल हो गया और हार कर चला गया। सबेरे तीनों व्यक्ति उठे तो उनके लाल शरीर देखकर कारण पूछा तो तीनों बोले-रात में हम एक पिशाच से लड़े थे । इसी कारण खून से शरीर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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