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________________ पाते नरक, लुब्ध लालची ३०१ इच्छाओं को पूर्ण करने की चाट लगेगी। फिर वह अपनी सारी शक्ति, समय और मेहनत उसी में लगाएगा। इसके अतिरिक्त उसकी अनुचित इच्छा-पूर्ति के साथ-साथ हजारों लोगों को उससे दुःख और कष्ट होगा, वह कितना बड़ा पाप होगा ? एक आदमी अनुचित तरीके से अपनी तिजोरी नोटों से भरी देखना चाहता है, उसे उन नोटों की अब कोई आवश्यकता नहीं है, किन्तु दूसरों की देखादेखी वह भी यही चाहता है और नोटों से तिजोरी भरता है, गरीबों का शोषण करके दूसरों को दुःखी करके । यह कितना महंगा सौदा है ! एक सेठ ने ज्योतिषी से पूछा-'मेरे भाग्य में धन कितना है ?" ज्योतिषी ने जन्मपत्री देखकर बताया-"धन का क्या पूछना ? दस पीढ़ी तक तो धन के अक्षय भण्डार भरे रहेंगे।" सेठ का चेहरा उतर गया यह सुनते ही, वह बोला-तुमने तो बहुत बुरी बात बता दी । दस पीढ़ी के बाद मेरा खजाना खाली हो जाएगा तो ग्यारहवीं पीढ़ी क्या खाएगी? उसके लिए तो अभी से कुछ जोड़ना चाहिए या नहीं ? मुनीम आया तो चिन्ता का कारण पूछा । सेठजी ने अपनी चिन्ता का कारण बताया तो मुनीम ने कहा- “सेठजी ! यह तो अच्छा ही है कि आपका धन दस पीढ़ी तक चलेगा ! सेठ–“ग्यारहवीं पीढ़ी भूखों मरेगी क्या यह अच्छा है ?" मुनीम चतुर था, सोचा-"युक्ति से समझाना चाहिए सेठ को।" उसने कहा-'सेठजी ! कुछ दान कीजिए दान से लक्ष्मी दृढ़ होती है।" मुनीम सीधा लिये हुए एक ब्राह्मण के घर पर ले गया और सेठ से कहा- "आप इस ब्राह्मण को दान लेने की प्रार्थना कीजिए।" सेठ ने ब्राह्मण से सीधा दान लेने की प्रार्थना की । ब्राह्मण संतोषी था। उसने कहा"जरा घर में जाकर देख आऊँ।" वह भीतर जाकर आया और बोला-सेठजी, माफ कीजिए, आज तो सीधा कहीं से आ गया है, मुझे जरूरत नहीं है।" सेठ ने कहा"इससे क्या हुआ ! यह रख लीजिए, कल काम आ जाएगा।" संतोषी ब्राह्मण बोला --"कल की चिन्ता आज क्यों करूँ ? जब भिक्षा पर जीना है तो संग्रह किसलिए? कल कोई भी देने वाला आ जायेगा । दाता सबको समय पर देता ही है।" उत्तर सुनकर सेठ के हृदय की आँखें खुल गईं। सोचा-एक तो यह है कि कल की भी चिन्ता नहीं करता, और एक मैं हूँ, जो ११वीं पीढ़ी की चिन्ता में घुलता जा रहा हूँ। कैसा मूर्ख हूँ मैं।" कहना न होगा, उसी दिन से सेठजी की ग्यारहवीं पीढ़ी के लिए धन-संग्रह की इच्छा भी दूर हो गई ! किन्तु जो मनुष्य एक इच्छा की पूर्ति होते ही दूसरी और तीसरी इच्छा की पूर्ति में घुलता जाता है, वह कितना दुःखी और दयनीय बन जाता है ? इच्छाओं की मांग, विभिन्न रूप में जब कोई इच्छा मन में जागती है तो वह मन से मांग करती है—"अमुक वस्तु चाहिए।" देखना यह है कि किसकी कौन-सी मांग है ? पाश्चात्य विचारक काउली (Cowley) के शब्दों में देखिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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