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आनन्द प्रवचन : भाग ८
आखिर इस पाप का घड़ा फूटा। सन् १८९१ में जन्मे और १६३० में एक राज्य के शासनाध्यक्ष बने पापी नुजिलो को उसी के राज्य के किसी खीजे हुए प्रजाजन ने ३१ मई १६६१ को गोली से उड़ा दिया।
क्या आप नुजिलो के जीवन को नारकीय जीवन नहीं कहेंगे ? बन्धुओ ! इस प्रकार के बड़ी-बड़ी विकृत इच्छाओं और लिप्साओं से प्रेरित व्यक्ति वहाँ भले ही पूर्व पुण्यवश कुछ दिन के लिए आनन्द मना ले, लेकिन आखिर उन भयंकर कुकृत्यों के फल भोगते समय उसे नानी याद आ जाती है। एक पंजाबी कवि ने इसका शब्दचित्र खींचा है उसकी वह कुछेक पंक्तियाँ मुझे याद आ रही हैं
"हंसदे ने खिल खिल जेहड़े, रोवणगे यार कलनू।
यम्मां ने लेखा लेणा, फड़फे तलवार तैनूं ॥" जो आज अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण होते देख उन पाप कर्मों को करके खिलखिलाकर हंसते हैं, वे कल को (भविष्य में शीघ्र ही) फूट-फूट कर रोयेंगे । जब यम (नरक के परमाधामी देव) तलवार हाथ में पकड़कर उसके पाप कर्मों का लेखा लेंगे, यानी फल देंगे। उच्छृखल विशाल इच्छाएं मन-मस्तिस्क पर हावी हो जाती हैं
___ यह तो आप जानते ही हैं कि इच्छाएँ अनन्त हैं और मनुष्य जितनी इच्छाएँ करता है, उतनी कदापि पूरी नहीं होतीं, न हो सकती हैं। प्रसिद्धवक्ता सिसरो (Cicero) ने भी कहा है--
" "The thurst of desire is never filled nor fully satisfied" इच्छा की प्यास कभी बुझती नहीं है, और न ही पूर्णतया सन्तुष्ट होती है। एक बार एक आध्यात्मिक गुरु ने अपने शिष्य से पूछा- "वत्स ! यह तो बताओ कि क्या तुमने कहीं कोई बिना पाल का सरोवर देखा है ?" शिष्य ने गुरुजी का आशय समझ कर कहा- "इच्छा गुरुजी ! बिन पाल सरवर ।" गुरुदेव ! दुनिया में इच्छा एक ऐसा सरोवर है, जिसके कोई पाल नहीं है, क्योंकि इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती। इसीलिए इच्छा पूरी न होने के दो कारण हैं-एक कारण तो यह है कि मनुष्य की इच्छाओं, कामनाओं, तृष्णाओं या एषणाओं की कोई सीमा नहीं होती। वे असीम होती हैं और फिर दूसरा कारण यह भी है कि मनुष्य की इच्छाओं का एक रूप या प्रकार स्थिर नहीं होता, वह बिजली की चमक की तरह बार-बार बदलता रहता है । एक इच्छा अभी पूरी हुई ही नहीं, तब तक दूसरी उससे विरोधी इच्छा पैदा हो जाती है। मनुष्य यदि उन इच्छाओं की गिनती करने बैठे तो गिनती करता-करता थक जाये। फिर इस छोटी-सी जिन्दगी में इतनी असीम इच्छाओं की पूर्ति कर ही कैसे सकता है ? कभी-कभी तो एक इच्छा की पूर्ति करने में ही वर्षों लग जाते हैं, उस दौरान कई नई-नई इच्छाएँ आकर अपनी झांकी दिखा जाती हैं। इच्छाओं के पीछे दीवाना बना हुआ मनुष्य इस बात को नहीं समझता कि मैं जिन
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