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________________ लुब्ध लालची २६३ वह गोरा नहीं, काला किरानी था । प्रारम्भ में वह एक डाकखाने में बाबू था । पड़ौ - सियों के जानवर चुरा लेना, और चटकर जाना, उसका प्रारम्भिक कार्यक्रम था । बाद में उसने अमीरों को शराब, जुआ और लड़कियाँ सप्लाई करने का धन्धा अपनाया । एक कुख्यात तस्कर मैक्सीन के साथ साँठ-गाँठ करके वह राजनीति में घुसा और हथकण्डेबाजों के सहारे शासनाध्यक्ष बन गया । उसने विभिन्न प्रकार की तिकड़मबाजी करके करोड़ों की सम्पत्ति कमाली और पानी की तरह विलासिता एवं रंगरेलियों में बहा दी । उस राज्य में चल रही अपराधी प्रवृत्तियों में उसका छिपा हाथ रहता था और उससे वह भारी कमाई करता था । पाते नरक, महत्वाकाँक्षी और लोभी नुजिलो ने संकेत करके अपने राज्यों में सिर्फ दो नारे लिखवाये - एक ईश्वर का दूसरा नुजिलो का । वह अपने राज्य में अपने को ईश्वर के समकक्ष कहलवाता था। एक बार नुजिला ने समाचार पत्रों में अपनी मृत्यु का समाचार छपवा दिया, फिर कुछ दिनों बाद वह प्रकट हो गया । उसकी मृत्यु पर जिन-जिन लोगों ने खुशियाँ मनाई थीं, उनका पता लगाकर उसने उन सभी लोगों को मौत के घाट उतरवा दिया । सामान्य लोभ के साथ उसकी विकृत महत्वाकाँक्षा का सबसे नृशंस कुकृत्य कुछ ही वर्षों पहले संसार ने जाना, जो नादिरशाह, चंगेजखाँ और हलाकू के कुकृत्यों को भी मात कर गया । बात तनिक सी थी । नुजिलो की एक रखेल 'डोला आयसाबेल माये' ने उसे ताना मारा कि उसके कृषि फार्म के पेड़ों की पत्तियाँ चरवाहे लोग अपने जानवरों को चरा देते हैं और वह शासक होते हुए भी उन्हें रोक नहीं पाता ।" व्यंग करारा था । नुजिलो ने उसी क्षण रुष्ट प्रेमिका को आश्वासन दिया कि 'वह चरवाहों के पूरे गाँव का ही अस्तित्व मिटा देगा।' दूसरे दिन वह सेना को साथ लेकर उस गाँव 'ऊआनामि' पहुँचा और वहाँ के समस्त नीग्रो नागरिकों का कत्ले आम करा दिया । नर-नारी, बालक-वृद्ध, सभी घरों से पकड़कर लाये जाते और रस्सों से बँधे उन लोगों को भोंथरी कुल्हाड़ियों से लकड़ी चीरने की तरह काट डाला गया । गिरजाघर में छिपे हुए अबोध बालकों तक को उसने नहीं छोड़ा। वहाँ के निवासी कुल २५०० लोगों का उसने अपनी क्रूर महत्वाकाँक्षा की पूर्ति के लिए सफाया करवां दिया । एक भी जीवित नहीं बचा। वह सारा इलाका लाशों से पट गया और जमीन रक्त रंजित हो गई । इस प्रकार २५०० निरीह निरपराध मनुष्यों के नृशंस वध की मिसाल कम से कम इस शताब्दी में तो नहीं मिलती । कहते हैं, उसने अपनी छोटी-सी जिन्दगी में अपने बालों से भी अधिक संख्या में कुकृत्य किये होंगे । ये किसी अभाव या संकट के कारण नहीं, किन्तु अपनी विकृत महत्वाकांक्षा एवं लोभवृत्ति से प्रेरित होकर किये थे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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