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________________ १६ आनन्द प्रवचन : भाग ८ वह दुनियादारी के झमेले में पड़ जाता है, उसे पता ही नहीं लगता कि कब और क्यों मुझे मनुष्य जीवन मिला तथा कब और कैसे वह बीत गया ? एक रोचक पौराणिक दृष्टान्त मुझे याद आ रहा है मर्त्यलोक में गधा, कुत्ता, बन्दर और मनुष्य रहते थे । वे चारों घनिष्ठ मित्र थे। भगवान ने उन चारों को ३०-३० वर्ष की उम्र दे दी। मनुष्य ने सबसे पहले गधे से पूछा-क्यों भाई ! तेरी उम्र तो ठीक है न ?" गधा बोला-मैं ३० वर्ष तक बोझ लाद-लाद कर मर जाऊँगा।" कुत्ते से पूछा तो वह भी कहने लगा तीस वर्ष तक मुझे कौन खाना देगा ? जिसके यहाँ भी जाऊँगा, मुझे डण्डा मार कर भगा देगा।" बंदर से उम्र का हाल पूछा तो वह भी कहने लगा-३० वर्ष तक लोग मुझे डंडे पत्थर मार-मार कर मेरी जान निकाल देंगे।" तीनों की बात सुनकर मनुष्य बोला-मुझे तो बहुत ही कम उम्र मिली है ! तीस वर्ष मेरे लाड़-प्यार में तथा पढ़नेलिखने में ही समाप्त हो जाएंगे।" चारों ने मिलकर भगवान के पास अपनी-अपनी शिकायत ले जाने का निश्चय किया। चारों ने भगवान् के पास जाकर हल्ला मचाना शुरू किया। भगवान् ने पूछा- क्या बात है ?' गधा, कुत्ता, और बंदर तीनों ने एक स्वर से कहा- "भगवान् ! हमारी उम्र तो बहुत अधिक है। हम तीनों की उम्र में से २०-२० वर्ष काट कर मनुष्य को दे दीजिए।" मनुष्य ने कहा, मेरी उम्र तो बहुत ही कम है, मुझे अधिक उम्र चाहिए।" भगवान् ने तंग होकर गधे, कुत्ते और बंदर के २०-२० वर्ष मनुष्य को दे दिये । मनुष्य खुशी से फूला नहीं समाया । कहते हैं, तब से मनुष्य प्रारम्भ के ३० वर्ष तक मनुष्य का जीवन बिताता है। खाना-पीना, पढ़नालिखना भी इस उम्र तक प्रायः माँ-बाप के सहारे जीता है। ३० पूरे करते ही वह नौकरी करने लग जाता है, या किसी धंधे में प्रवृत्त हो जाता है। इस समय में मनुष्य गधे का सा जीवन बिताता है। गधा जिस तरह बोझ ढोता है और मालिक का पेट भरता है, वैसे ही मनुष्य भी अत्यन्त परिश्रम करके कमाकर लाता है और अपने बीवी-बच्चों का पेट पालता है। इसके पश्चात मनुष्य नौकरी या व्यवसाय करता हुआ थक जाता है, रिटायर्ड हो जाता है, तब गधे का-सा जीवन समाप्त करके कुक्कुर जीवन में प्रवेश करता है। कुत्ता जैसे घर का पहरा देता है, वैसे ही निवृत मानव अब कुत्ते की तरह एक जगह बैठा-बैठा घर का पहरा देता है। मनुष्य के बहू-बेटे उसके लिए दरवाजे में खाट बिछा देते हैं, वहीं पर बैठकर वह घर की रखवाली करता है। कुत्ते का-सा जीवन समाप्त करने के बाद वह बन्दर के-से जीवन में आता है। उसकी सूरत-शक्ल भी बंदर की-सी हो जाती है । जिस तरह बंदर को छोटे बच्चे तंग करते हैं, उसी तरह मनुष्य को भी इस उम्र में तंग करते हैं। कहना होगा कि मनुष्य अपनी विवेक बुद्धि को तिलांजलि देकर जीवन को कमाने-खाने, मौज उड़ाने और अपने परिवार की मोहमाया में फँस कर बिता देता है । जीवन का सदुपयोग कैसे किया जाय ? इससे अनभिज्ञ रहता है। इसलिए मनुष्य-जीवन, गर्दभ-जीवन, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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