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जीवन की परख . १७ कुक्कुर-जीवन, और वानर-जीवन, इन चार विभागों में विभक्त होकर अज्ञानी मनुष्य अपना जीवन समाप्त कर देता है ।।
एक साधना निष्ठ कवि ने इसी प्रश्न को उठाया है
यह दुनिया है, यहाँ जीवन बिताना किसको आता है। हजारों जन्म लेते हैं बनाना किसको आता है ? कमाने के लिए सारे खूब ही दौड़ करते हैं । तुम्ही कहदो सही, धन का कमाना किसको आता है ? लगाते हैं मधुर प्रीति, क्षणिक दो चार रोजों की।
मगर सच्ची मुहब्बत का लगाना किसको आता है ?
इसीलिए सेंटमेथ्यु ने लिखा है-जीवन का द्वार तो सीधा है, पर मार्ग संकीर्ण है।"
जीवन, एक यात्रा : पाथेय की आवश्यकता मनुष्य का जीवन क्या है ? इस सम्बन्ध में एक पाश्चात्य विचारक ने कहा है
“Life is a journey, not a home ! a rood, not a city of habitation, and the enjoyments and blessings we have are but little inns on the roadside of life, where we may be refreshed for a moment, that we may with new strength press on to the end.”
"जीवन एक यात्रा है, वह कोई घर नहीं, सड़क नहीं, और न ही बसने के लिए नगर है । और इस जीवन यात्रा में जो आमोद-प्रमोद और देन हम पाते हैं, वे तो जीवन की छोटी-छोटी पथिकशालाएँ हैं, जो सड़क की बाजू में पड़ती हैं, जहाँ हम क्षण भर सुस्ता कर ताजगी लेते हैं, ताकि तरोताजा होकर हम फिर से नई शक्ति और स्फूर्ति के साथ अपने अन्तिम लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकें।"
कितना सुन्दर विचार है, जीवन को समझने के लिए। परन्तु हमारी जीवनयात्रा काफी लम्बी है, उसे तय करने के लिए पाथेय की आवश्यकता रहती है। बिना पाथेय के यात्रा करने वाला पथिक रास्तों में भूख-प्यास से घबरा जाता है, वैसे ही जीवन यात्री भी रास्ते में सुविचारों और सुसंस्कारों का पाथेय लेकर न चले तो उसे परेशानी उठानी पड़ सकती है, वह भटक भी सकता है, इधर-उधर । उत्तराध्ययन सूत्र भी इस बात का साक्षी है
अखाणं जो महंतं तु अपाहेओ पवज्जई।
गच्छंतो सो दुही होइ छुहातण्हाए पीडिओ ॥ १६/१६ ॥ जो साधनापथिक जीवन की इस लम्बी यात्रा में बहुत लम्बे महान् मार्ग पर बिना पाथेय के चलता है, वह रास्ते में ही भूख-प्यास से पीड़ित होकर दुःखी हो जाता है।
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