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________________ जीवन की परख १५ मानव जीवन के विषय में भी यही बात कही जा सकती है। आप भी अपने जीवन के सम्राट हैं। आप आत्मा हैं। आत्मा रूपी सम्राट को यह सारा दायित्व मिला है। आपकी सेवा के लिए मन, बुद्धि, हृदय, इन्द्रियाँ, हाथ-पैर आदि अंगोपांग मिले हैं । परन्तु आप अपने जीवन का साम्राज्य पाकर भी उसका संचालन न कर सकें, उस जीवन को समझें नहीं, उसका उपयोग कैसे किया जाए, इसे भली-भाँति जाने नहीं, मन, बुद्धि आदि जो सेवक आपकी सेवा में तैनात हैं, उनसे डरते-डरते रहें, वे आपकी खिल्ली उड़ायें, आपकी बात माने नहीं; आप मन को अध्ययन मनन, ध्यान, जप में लगाना चाहते हैं, लेकिन वह लगता नहीं, इन्द्रियों को आप अपनी सेवा में लगाना चाहते हैं, लेकिन वे भी आपकी बात सुनी-अनसुनी करके विषयों की ओर दौड़ने लगती है, ऐसी स्थिति में भला बताइये आपकी दशा भी उस भिखारी राजा की-सी-नहीं हो रही हैं ? भिखारी राजा भी सबसे डरता-कांपता था, क्योंकि उसमें भिखारीवृत्ति गई नहीं थी, राजा पद पर पहुँचने के बाद भी वह अपने जीवन की उच्चता को समझा नहीं था, उसका उपयोग भी भलीभाँति जानता न था । इसलिए उसके जीवन में राजा का जीवन पाने का कोई आनन्द नहीं था, बल्कि दुःख था। इसीप्रकार आप भी अगर इन मन, शरीर, इन्द्रिय आदि से दबते-डरते हैं, वे आपकी बात नहीं मानते हैं तो समझना चाहिए कि आप भी अपनी पूर्वजीवन की गुलामी वृत्ति को नहीं छोड़ सके हैं। ऐसी स्थिति में कहना पड़ेगा कि आप जीवन के वास्तविक सम्राट नहीं हैं। गहराई से विचार करने पर पता चलता है कि जो अपने आपको भूल जाता है, अपने आपको भलीभाँति जानता-परखता नहीं है, उसे दुनिया भी कुछ नहीं समझती। वह जब अपने जीवन का अर्थ, रहस्य, उपयोग आदि भली-भाँति समझ लेता है, तब कोई कारण नहीं कि शरीर, इन्द्रियाँ, मन आदि उसकी अवगणना करें, उसकी आज्ञा का उल्लंघन करें या उसे गुलाम बनायें । ___ अज्ञानी की तरह दुनियादारी में फंसकर मत जीओ परन्तु इस देवदुर्लभ मानव-जीवन का इतना सुन्दर मूल्यांकन किये जाने और उसके यथार्थ उपयोग के सम्बन्ध में मार्गदर्शन दिये जाने पर भी मनुष्य जब अर्थपरायण, कामपरायण, धर्मपरायण, कषायपरायण, व्यसनपरायण, विषयपरायण आदि विभिन्न स्तर के जीवनों को अपनी आँखों से इस दुनिया में देखता है तो वह चकाचौंध में पड़ जाता है, कुछ भी निर्णय नहीं कर सकता कि इनमें से कौन-सा जीवन प्रशस्त है ? कौन-सा जीवन जीने से यहाँ भी सुखशान्ति मिलेगी और अगले जन्म में भी। तथा मोक्ष के लक्ष्य की ओर ले जाने वाला जीवन कौन-सा है ? क्योंकि इन सभी जीवन जीने वालों में बाहर से तो कोई कम, कोई ज्यादा सुखी नजर आता है । इसीलिए गौतमकुलक में इन विविध प्रकार के जीवन जीने वालों की परख दे दी है। परन्तु इसको नजर-अंदाज कर देने का परिणाम यह होता है कि मनुष्य-जीवन पाकर भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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