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________________ १४ आनन्द प्रवचन : भाग ८ हंसा और कह बैठा-"आपको किसी बात का कुछ पता तो है नहीं, यों ही बीच में टाँग अड़ाते हैं। आप तो चुपचाप बैठे देखते रहें। हम लोग सब काम निपटा लेंगे। सेनाध्यक्ष आया, शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर। तभी भिखारी काँपने लगता है। उसकी दैत्याकृति देखकर सोचता है कि कहीं इसे कुछ कहा तो मेरी पूजा कर देगा। नगर के प्रतिष्ठित नागरिक, सेठ-साहूकार और विद्वान आते हैं, उससे मिलने के लिए, तब भी वह चुपचाप टुकुर-टुकुर उनकी ओर देखता रहता है। वे सब भिखारी-राजा की ओर देखकर मुस्कराते हैं, कानाफूसी करते हैं, मजाक उड़ाते हैं। बेचारा भिखारी राजा सोचता है-भिखारी जीवन में तो अपमान बर्दाश्त किया जा सकता था, पर अब राजा के पद पर आसीन होने के बाद भी इस प्रकार का अपमान कैसे सहा जा सकता है ? इससे तो भिखारी जीवन अच्छा था, राजा बन जाने पर भी अपमान मिले, यह असह्य है। पर वह किसी को कुछ कह या कुछ भी कर नहीं सकता । बेचारा मन मसोस कर अपमान की कड़वी बूंट पीकर रह जाता है। और तो और, साधारण पहरेदार और चपरासी भी जब भिखारी-राजा के पास से होकर निकलते हैं लेकिन उसका सम्मान नहीं करते। वह यह सब देखकर मन ही मन कुढ़ता है, जलता है और वेदना महसूस करता है। . __ 'ऐसी स्थिति में, अगर आप में से किसी को राजा बनने के लिए कहा जाए और यह बताया जाए कि आपको सोने के सिंहासन पर बिठाया जाएगा, मुकुट आपके सिर पर रखा जाएगा, आप पर छत्र-चवर भी ढुलाए जायेंगे, आपकी जय भी बोली जाएगी, लेकिन कोई भी आपकी किसी भी बात को नहीं मानेगा । आपको चुपचाप बैठे सब कार्यवाहो देखनी होगी। सब आपकी हंसी मजाक करेंगे, खिल्ली उड़ाएँगे, कानाफूसी करेंगे; तो क्या आप ऐसा राजा बनना पसंद करेंगे? मैं समझता हूँ आप में से कोई ऐसा राजा बनना नहीं चाहेगा। जिस जीवन में धन-वैभव हो, राजचिह्न और राजसी ठाट-बाट भी हो, लेकिन राजसत्ता, राजाज्ञा बिलकुल न चले, बल्कि चुपचाप बैठे देखते रहना पड़े; राजकर्मचारियों और अधिकारियों में से कोई भी राजा की बात मानने को तैयार न हो, वैसा जीवन या वैसा पद कोई भी समझदार व्यक्ति स्वीकार करने को तैयार न होगा । क्या मानवजीवन की शान को सोने-चाँदी से, वैभव और ठाट-बाट से तोला जा सकता है ? मानवजीवन का महत्व सोने-चाँदी एवं भौतिक पदों में नहीं है। सोने के सिंहासनों और महलों से ऊपर इस जीवन की शान रहती है। जब तक इस जीवन की शान नहीं पा जाए तब तक कौन ऐसा बुद्ध होगा, जो केवल ऊपरी ठाट-बाट-और वैभव से लुभायमान होगा? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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