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अभिमानी पछताते रहते
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समुद्र किसकी मानने वाला था । समुद्र पर भला राजा का शासन कहाँ चलने वाला था। फिर भी राजा ने गुस्से में आकर कहा - ' अरे ढीठ ! वापिस लौटता है या नहीं ! मेरा हुक्म मान जा ।' परन्तु समुद्र में अधिकाधिक ज्वार बढ़ता जा रहा था, इधर राजा के क्रोध का ज्वार भी बढ़ा । राजा ने अहंकारवश अत्यन्त क्रोधावेश में आकर तलवार निकाली और दरबारी रोकें उससे पहले ही यों चिल्लाता हुआ कि * बस, अब तो इसे एक झटके में ही समाप्त कर डालूँगा, पानी में आगे बढ़ गया ।' अहंकार के नशे में राजा को भान ही नहीं रहा कि वह कहाँ जा रहा है । थोड़ी ही देर में समुद्र की प्रचण्ड लहरें उस पर फिर गयीं । राजा को सदा के लिए अपनी गोद में सुला दिया ।
बन्धुओ ! शक्ति के अहंकारी राजा को अपनी शक्तियों का भान न होने से अपने प्राण खोने पड़े । दुनिया की दृष्टि में उसकी कितनी हास्यास्पद स्थिति हो जाती है ? इस सोचनीय स्थिति के लिए मनुष्य का अहंकार ही जिम्मेदार है ।
अहंकारी दूसरों से कुछ सीखना नहीं चाहता
अहंकारी व्यक्ति अपने आपको सर्वज्ञ, सर्वपूर्ण मान बैठता है, अथवा अपने
सीखने की इच्छा
एवं बड़ा मान लेता है । ऐसी जिज्ञासा या दरवाजे बन्द करना तो
कर लेता है, वह चाहता ही नहीं ।
अभिमान की अकड़ में अपने आपको बहुत पहुँचा हुआ मनोवृत्ति के कारण दूसरों से कुछ प्राप्त करने की ठप्प हो जाती है । क्योंकि वह अपने दिलदिमाग के किसी दूसरे का विनय करना या उससे नम्रता से बात इस पूर्णता का अहंकार उसे आगे नहीं बढ़ने देता और न ही नया कुछ सीखने देता है । फलस्वरूप उसके अध्ययन-मनन प्रगति प्रशिक्षण पर वहीं ताला लग जाता है । बाद में जब जीवन-संग्राम में कठिनाइयाँ आती हैं, या उतार-चढ़ाव आते हैं तो वह घबरा जाता है, वह उन समस्याओं को शान्ति से सुलझा नहीं पाता । केवल गर्व और गुस्सा करके रह जाता है । उस समय उसे पश्चाताप भी होता है कि मैं विनय
पूर्वक दूसरों से कुछ विद्या या शिक्षा ग्रहण न कर सका । विद्या या सूझबूझ होती तो मैं इस विपत्ति में न पड़ता क्या होता जबकि वह उस सुनहरे अवसर को चूक गया ।
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मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम इतने समर्थ और वीर थे, लेकिन उनमें अपनी शक्तियों का अभिमान न था । बे वन्य भीलो, निषादों, वानर-जाति के वीरों, इत्यादि सबसे सहयोग लेते थे, सबके यथोचित गुणों के प्रशंसक थे, कृतज्ञता प्रगट करते थे, और उनसे कुछ भी जानने-सीखने योग्य होता तो जानते-सीखते थे । शबरी जैसी शूद्र जातीय महिला से भी उन्होंने किष्किन्धा और लंका आदि के मार्ग के विषय में पूछा था और तो और जब उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त कर ली थी, और रावण मृत्यु की घड़ियाँ गिन रहा था, उस समय भी रावण में राजनीतिज्ञता आदि के गुणों
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यदि आज मेरे पास अमुक
परन्तु अब खेद करने से
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