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________________ अभिमानी पछताते रहते २५३ मूंछ ऊँची रखने के लिए, अपने अहं की पूर्ति के लिए बड़ी से बड़ी धनराशि खर्च कर सकते हैं। कहीं अपना जरा-सा अपमान हो जाए, चाहे वह दृष्टि में न आया हो फिर भी अभिमानी पुरुष उसे बहुत अधिक तूल देकर उस अपमान का बदला दूसरे का अपमान करके लेते हैं और इस तरह अपने अभिमान की भूख मिटाते हैं स्वयं को बर्बाद करके। __ एक जगह सामूहिक भोज था। भोज में भोजन परोसने वाला सबको पापड़ परोस रहा था । पंक्ति में बैठे लोगों को वह एक छोर से दूसरे छोर तक पूरा पापड़ देता जा रहा था, किन्तु एक व्यक्ति को पापड़ परोसते समय वह पापड़ जरा-सा खण्डित हो गया। परोसने वाले ने किसी दुर्भाव से वह खण्डित पापड़ नहीं परोसा था। न ही किसी व्यक्ति ने उस पर ध्यान दिया और न उस परोसने वाले ने ही इस पर कोई गौर किया। किन्तु जिसकी थाली में वह खण्डित पापड़ परोसा गया था, उसे यह बहुत बुरा लगा। उसने मन ही मन अपमान की गांठ बाँध ली कि इसने सबकी थाली में पापड़ परोसा, लेकिन मेरी थाली में खण्डित पापड़ परोसा, इसके पीछे मुझे अपमानित करने की इसकी शरारत है । खैर मैं देख लूंगा । पूरा बदला लूंगा इससे ।। खण्डित पापड़ परोसने के लिए सामूहिक भोज का आयोजन करना आवश्यक था । पर पास में इतना धन ही नहीं था कि वह सारे गाँव को सामूहिक भोज दे सके । मगर अभिमानी जो ठहरा। उसे अपने तथाकथित अपमान का किसी तरह बदला लेना ही था, लाख जाये पर मेरा अहं न जाये इस प्रकार अहं की बलिवेदी पर वह सामूहिक भोज के लिए कर्ज लेकर भी हजारों रुपये खर्च करने को तैयार हो गया। ठीक समय पर सारे गाँव को भोजन के लिए आमंत्रित किया। भोजन की समाप्ति पर सबको पापड़ परोसने के लिए वह अभिमानी व्यक्ति स्वयं आया और जिस व्यक्ति ने सहजभाव से खण्डित पापड़ परोसा था, उस व्यक्ति को खण्डित करके पापड़ परोसा । उक्त सेठ ने पापड़ खाना शुरू किया, क्योंकि उसके मन में कोई भी भावना नहीं थी । इस अभिमानी व्यक्ति ने हंसते हुए कहा-“सेठजी ! याद है, आपने मुझे खण्डित पापड़ परोसा था, मैंने भी आज खण्डित पापड़ परोस कर उस अपमान का बदला ले लिया है।" सेठजी ने हंसकर कहा-"अरे मूर्ख ! क्या उसी का बदला लेने के लिए तूने इतना कर्ज करके सामूहिक भोज का आयोजन किया है ? अच्छा होता, तू मुझे अकेले बुलाकर अपना बदला ले लेता तो इतनी पैसे की बर्बादी तो नहीं होती ? अथवा तू मुझे उस समय पूछता तो मैं खण्डित पापड़ के बदले अखण्ड पापड़ तेरी थाली में परोस देता।" अहं के पुजारी अहँ के पुजारी नहीं होते कई बार इसी प्रकार समाज में अभिमानियों में आपाधापी होती है और होड़ लगती है । परन्तु अभिमानी अपने झूठे अहं की पूर्ति करके ही दम लेता है। वह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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