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________________ २५२ आनन्द प्रवचन : भाग ८ पति ने बहुत समझाया, पर उस अहंकारिणी ने एक न मानी। आखिर पति ने हार मान ली। बेचारेने बाजार जाकर एक धनिक से कर्ज लिया और चूड़ा खरीद कर लाया। महिला चूड़ा पहनकर फूली न समाई । अपना चूड़ा लोगों को दिखाने के लिए वह अपनी झोपड़ी के द्वार पर आकर एक पीढ़े पर बैठ गई। हाथों को सामने लटका दिया इस हालत में वह भूखी-प्यासी बहुत देर तक बैठी रही, पर उसका चूड़ा देखने के लिए कोई भी नहीं आया, बधाइयाँ तो मिलती ही कहाँ से ? उसका पूरा दिन वैसे ही बीत गया। दूसरे दिन भी उसने वही नाटक किया, पर उस दिन भी कोई नहीं फटका। अब तो उसके मन में प्रदर्शन की आग भभक उठी। उसने ली दियासलाई, अपनी झोंपड़ी सुलगा ली। देखते ही देखते आग की लपलपाती ज्वालाएं आकाश को छने लगीं। चारों ओर से लोग आग बुझाने आये । आग तो बुझा दी, पर झौंपड़ी जलकर खाक हो गई । लोगों ने बहुत ही सहानुभूति प्रगट की-बेचारा पहले ही गरीब है, फिर यह छोटा-सा झोंपड़ा भी जल गया, कितना नुकसान हो गया ? लोग तो संवेदना प्रगट कर रहे थे, पर उस स्त्री के मन में अब भी प्रदर्शन की आग भड़क रही थी। लोगों ने उससे पूछा-'बहन ! तुम्हारे पास कुछ बचा कि नहीं ?" वह हाथ ऊपर उठाकर बोली-और तो क्या बचता, केवल यह चूड़ा ही बचा रह गया है।" लोगों ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा-"अरे ! तुमने यह चूड़ा कब से पहन लिया ?" वह बोली- "अरे भाई ! अगर यही बात पहले पूछ ली होती तो मेरी झोंपड़ी क्यों जलती ? । तो क्या लोगों को चुड़ा दिखाने के लिए ही तुमने झोंपड़ी जलाई थी ?" लोगों ने पूछा तो वह चुप हो गई। लोग उसकी मूर्खता पर हंस रहे थे। उनकी सहानुभूति अब आक्रोश में बदल गई। ___मैं पूछता हूँ क्या ऐसे प्रदर्शनकारी अहंकारियों की जमात की, किसी जाति या समाज में आज भी कोई कमी है ? आज दहेज या अन्य वैभव की चमक-दमक का दिखावा विवाह शादियों में बहुत होता है । समाज में अपना घर फूंक कर प्रदर्शन करने वाले बहुत मिलेंगे। ऐसे भी अहंकारी प्रदर्शन कर्ता मिलेंगे जो अपने आपको श्रेष्ठ एवं महान कहलाने के लिए दुनिया भर का खर्च कर देंगे, परन्तु किसी सार्वजनिक सेवाकार्य में पैसा खर्च करना हो, बिना किसी आडम्बर या प्रसिद्धि के किसी सेवाकार्य में पैसा लगाने को कहा जाए तो बगलें झांकने लगेंगे, सौ बहाने बनाकर टालमटूल करेंगे। सम्मान के भूखे लोग प्रदर्शन में तो बाजी मार जाते हैं, परन्तु अच्छे कार्य के लिए चुपचाप देने में कतराते हैं। 'ऊँची दुकान और फीका पकवान' वाली कहावत ऐसे ही लोगों पर लागू होती है। अभिमानी अपमान का बदला लेने, स्वय बर्बाद हो जाता है। आज अधिकांश अभिमानी व्यक्तियों का मानस ऐसा बन गया है कि वे अपनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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