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अभिमानी पछताते रहते
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'बालजणो पग भइ' अज्ञानीजन ही गर्व करता है । जो ज्ञानी और विवेकी होता है, दुनिया को खुली आँखों से देखता है, संसार के प्रत्येक पदार्थ की वास्तविकता को समझता है, वह कभी गर्व या अभिमान नहीं करता । वास्तव में देखा जाए तो अभिमानी के हृदय में ज्ञान का निवास हो नहीं सकता । किसी के कमीज की जेब फटी हो तो उसमें पैसे टिके नहीं रह सकते, नीचे गिर जाएँगे, वैसे ही किसी व्यक्ति का हृदय अभिमान से फटा पड़ा हो, उसमें ज्ञान और विवेक कहाँ ठहरेंगे ? एक विचारक कहता है कि 'अभिमानी अपने आपको सर्वोत्कृष्ट और दूसरे को निकृष्ट मानकर दो गलतियाँ करता है ।'
अभिमानी के मन में प्रदर्शन की भावना
अभिमानियों का मन इतना संकीर्ण एवं तुच्छ होता है कि वह दूसरों की तरक्की देख कर जलने लगता है । वह दूसरों के घमण्ड को घृणा की दृष्टि से देखता है, दूसरों की प्रतिष्ठा उसे खटकती रहती है, दूसरे का अत्यधिक सम्मान उसे काँटे की तरह चुभता है । वह दूसरों को नीचे गिराकर या दुनिया की नजरों में दूसरों को नीचा दिखाकर उसकी नींव पर अपनी प्रतिष्ठा का महल खड़ा करने का प्रयत्न करता है । अहंकारी व्यक्ति ही अधिक बोलते हैं, वे ही अपना पाण्डित्य प्रदर्शित करने के लिए दूसरों से वाद-विवाद करने के लिए कमर कसे रहते हैं । ऐसे अभिमानी एवं अहंकारी लोगों को प्रदर्शन की बीमारी लगी रहती है । वे जब देखो, तब अपनी अहंकारी भूख मिटाने के लिए कोई न कोई आडम्बर करते रहते हैं । दिखावे से उनको इतना अधिक प्रेम होता है कि अगर उनकी दृष्टि में यह आ जाए कि दूसरा उनसे अधिक बाजी मार रहा है तो वे अपना सर्वस्व खर्च करके, दूसरों से उधार लेकर भी अपना प्रदर्शन करके अपना बड़प्पन दिखाते रहते हैं । अपनी हैसियत नहीं होने पर भी अभिमानी दुनिया की जबान से अधिक शक्तिशाली, धनवान् या बुद्धिमान अथवा चारित्रवान कहलाने के लिए, या दुनिया की नजरों में श्रेष्ठ जँचने के लिए अपना सर्वस्व होम देता है ।
एक गरीब स्त्री एक दिन किसी सेठ के यहाँ गई । सेठानी ने चूड़ा पहन रखा था। वह हाथीदाँत का बना हुआ और बहुत ही बढ़िया था । पड़ोसिनें उसे देखने आ रही थीं और सेठानी को बधाइयाँ देने वालों का तांता लग रहा था । गरीब महिला ने जब यह रंगढंग देखा तो मन में सोचा - ' मैं भी क्यों न हाथीदांत का चूड़ा पहनूं और पड़ोसियों से बधाइयाँ प्राप्त करूँ ।' बस क्या था, घर आते ही उसने अपने पति से कहा - 'मुझे हाथी दांत का चूड़ा ला दो ।' पति ने कहा - ' देखती नहीं, घर की परिस्थिति कैसी है ? यहाँ तो पेट भी कठिनाई से भरता है और तुम्हें हाथीदांत का चूड़ा चाहिए ।"
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परन्तु पत्नी भी गर्वीली और हठी थी । उसने साफ कह दिया - "चूड़ा लाओगे, तभी चूल्हा जलेगा । मैं चूड़े के बिना रह नहीं सकती । "
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