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आनन्द प्रवचन : भाग ८
श्री शुभचन्द्राचार्य कहते हैं
"भस्मी भवति रोषेण पुंसां धर्मात्मकं वपुः" क्रोध से मनुष्यों का धर्म प्रवृत्तिरूप शरीर जल जाता है। इसलिए क्रोधाग्नि जहां स्वपर-दाहक है, धर्मध्यान, धर्म, अर्थ और काम इन सबको जला डालती है, तब वह सुखदायक कैसे हो सकती है ? क्रोधी व्यक्ति सन्यास लेने पर भी क्रोधाविष्ट रहता है :
__ क्रोधी व्यक्ति का जीवन बड़ा विचित्र होता है । वह सन्यास भी ले लेता है, तो भी आवेश में आकर इसी प्रकार तप, जप, ध्यान, भिक्षा आदि करता है तो भी रोष में आकर । सन्यास लेने पर उसमें अहंकर की मात्रा बढ़ जाने से रोष भी बढ़ जाता है । कोई विरला ही होता है, जो तप, जप, नियम, व्रत आदि करते हुए भी पूर्वावस्था का क्रोधी मानस बदल देता हो ।
___एक गाँव में एक क्रोधी व्यक्ति था। एक दिन उसका क्रोध चरम सीमा पर पहुँच गया। उसने अपने बच्चे को कुएँ में धकेल दिया, पत्नी को मकान के भीतर बन्द करके आग लगा दी। जब दोनों मर गए तब वह बहुत पछताया और दुःखी हुआ । जैसा कि पायथा गोरस ने क्रोध के आदि और अन्त के विषय में कहा है
"Anger begins in folly and ends in repentence."
क्रोध का प्रारम्भ नादानी में होता है और उसका अन्त होता है-पश्चाताप में। इस क्रोधाविष्ट व्यक्ति की गाँव में बदनामी होने लगी, सब लोग धिक्कारने लगे, तब उसके मन में सन्यासी बन जाने का विचार आया। संयोगवंश गाँव में एक नग्नसाधु आए । उनसे पूछा-''मैं अपने क्रोध को कैसे मिटाऊँ ? ऐसा उपाय बताएँ, जिससे मैं क्रोधमुक्त हो जाऊँ ।” मुनि बोले- “सब कुछ त्याग कर हम जैसे निर्वस्त्र मुनि बन जाओ, तभी तुम्हारा क्रोध जाएगा।" उनके कहने से उक्त क्रोधी व्यक्ति ने वस्त्र फेंक दिये, सब कुछ छोड़छाड़ कर नग्नमुनि बन गया । मगर मुनि बन जाने पर भी उसका क्रोध गया नहीं। जितनी तीव्रता से वह अपने बालक को कुएँ में धकेल सका था, उतनी ही तीव्रता से वस्त्र भी फेंक सकता है, अत: वह भी एक क्रोधावेश का ही रूप था। दूसरे साधु उसके पीछे पड़ गए कि वह साधना में उनसे आगे न निकल जाए । इसलिए इसने भी. रोषवश उग्र साधना अपना ली। दूसरे मुनि छाया में बैठते थे वह धूप में खड़ा रहने लगा। दूसरे आहार करते थे, वह दूसरों से आगे बढ़ने के लिए निराहर रहने लगा। महातपस्वी के नाम से गाँव-गाँव में प्रसिद्ध हो गया।
एक बार महातपस्वी का राजधानी में पदार्पण हुआ। उनका बचपन का एक मित्र उनके तख्त के ठीक सामने नीचे बैठा था। उसने महातपस्वी का स्वभाव बदला या नहीं, इसकी जाँच करने के लिए पूछा-"आपका शुभ नाम ?” मुनि
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