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________________ २२४ आनन्द प्रवचन : भाग ८ जाती है। ऐसे समय सहृदता पूर्वक जो पीड़ितों के आंसू पोंछता है, वही बन्धु कहलाता है। . हडाला भाल के खेमाशाह ने गुजरात राज्य में भयंकर दुष्काल पड़ने पर बन्धु बनकर दुष्काल पीड़ित मानवों की जो सहायता की है, वह गुजरात के इतिहास में बेजोड़ है। उन्होंने जाति, धर्म-सम्प्रदाय, ग्राम-नगर आदि के भेद-भाव की दीवारें नहीं खींची। उन्होंने जैन धर्मी होते हुए भी दुष्काल से पीड़ित प्रत्येक जाति एवं धर्म सम्प्रदाय के मानव बन्धु की मुक्तहाथ से सहायता की। गुजरात के तत्कालीन बादशाह मुहम्मद बेगड़ा को भी मानना पड़ा कि शाह पहले शाह है, बादशाह बाद में शाह है। कितना भगीरथ कार्य था यह ! परन्तु खेमा देदरानी शाह ने अपना सर्वस्व अन्न-धन सारे गुजरात राज्य के दुष्काल-निवारणार्थ प्रस्तुत कर दिया । राष्ट्रविद्रोह के समय रक्षक बन्धु कई बार राज्य में भयंकर विद्रोह फुट पड़ता है, राज्य या राष्ट्र पर संकट आ पड़ता है। भारतवर्ष में तो ऐसे असंख्य उदाहरण मिल जाएँगे, जबकि कुछ देशबन्धुओं या राष्ट्रबन्धुओं ने देश, राज्य या नगर की रक्षा के लिए अपना महान आत्म-भोग दिया। ___ महात्मागाँधी जी और उनके स्वराज्य-आन्दोलन के साथी भारत को स्वतन्त्रता दिलाने के लिए प्राणप्रण से जुट पड़े-देश-बन्धु या राष्ट्र बन्धु बनकर । महात्मागाँधी जी ने राष्ट्र की हरिजन समस्या, खाद्य समस्या, महिला समस्या आदि अनेक समस्याओं को सुलझाने के लिए अथक प्रयत्न किया। स्वयं लाठियाँ-गोलियाँ सहीं, जेलों में गए, भूखे प्यासे भी रहे, अनेक यातनाएँ सहीं; किन्तु राष्ट्र के प्रति बन्धुता के कारण ही उन्होंने ये कष्ट सहर्ष सहे । चीन तथा पाकिस्तान के द्वारा भारत पर आक्रमण के समय अनेक व्यक्तियों ने राष्ट्र-बन्धु बनकर राष्ट्र को हर प्रकार से सहायता दी, यहाँ तक कि अपनी जानें लड़ा दीं, राष्ट्र रक्षा के लिए। ___ इसी प्रकार प्रान्त पर घोर उपद्रव के समय भी कई बन्धु उसे प्राणप्रण से बचाने का प्रयत्न करते हैं। अहमदाबाद उस समय घोर विपत्ति में था। हमीदखाँ अहमदाबाद पर चढ़ आया, तत्कालीन सूबेदार इब्राहीमकुली खाँ उसके सामने टिक न सका। हमीद खाँ की सेना चारों ओर लूटपाट, आगजनी और कत्लेआम करने लगी। एक जैनवणिक नगर सेठ खुशालचन्द्र ने हमीद खाँ से निवेदन किया-"शहर को अराजकता से बचाकर शीघ्र सुरक्षित कीजिए।" परन्तु हमीद खाँ ने कहा-'धन का ढेर सामने रखो, तभी सेना वापस लौट सकती है।' नगरसेठ ने कहा- "मांगो, जितना धन दूंगा, पर सेना वापिस लौटाओ। किन्तु ये निर्दोष मानवों की हत्या, सम्पत्ति का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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