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आनन्द प्रवचन : भाग ८
है ? पहले तुमने ऐसे कर्म किये ही क्यों थे? पहले कर्म करते समय तुम्हें सावधान रहना था । अब तो रोग का कष्ट तुम्हें भोगना ही पड़ेगा । "यादृक् करणं तादृग्भरणम् जैसी करनी वैसी भरनी । हम क्या कर सकते हैं।"
वह बेचारा ऐसे दु:ख के समय उपदेश क्या सुनता ? फिर सेठजी ने सहृदयतापूर्वक कहा-'पण्डितजी ! आपके उपदेश की इसे आवश्यकता नहीं। इसे तो कुछ सहायता की अपेक्षा है।" सेठजी ऊँट से उतरे और जेब में हाथ डाल कर कुछ सिक्के निकाले और उसके सामने फेंकते हुए कहा-लो, भाई ! ये पैसे । इनसे अपना इलाज करा लेना और तो मैं क्या कर सकता हूँ, तुम्हारी मदद ! सिक्के देखकर उक्त रोगी की आँखों में चमक आई। उसने उनकी ओर देखा, पर हाथ उन्हें उठा नहीं सकते थे, इसलिए लाचार पड़ा-पड़ा देखता रहा । ऊँट वाले ने जब यह माजरा देखा, तो उससे न रहा गया। उसने कहा-“सेठजी ! आपके सिक्के इसके किस काम के ? इस बेचारे से तो उठाए नहीं जाते। इसे तो सेवा की आवश्यकता है। आप आगे चलिए। मैं इसे किसी निकटवर्ती अस्पताल में पहुँचाकर आता हूँ।" यों कहकर ऊँट वाले ने उस रोग पीड़ित को अपने कंधों पर उठाया। उसके कपड़े के पल्ले में वे सिक्के डाले और वहाँ से चलकर एक हॉस्पिटल में ले गया। वहाँ के डॉक्टर से कह-सुनकर उसने उस रोगी को भर्ती कराया। वे सिक्के उसको सौंपे और फिर विदा माँगी-'भाई ! अब आगे सेवा की मेरी सीमा आ गई है। मैं जाता हूँ तुम अच्छी तरह इलाज कराने के बाद अपने घर चले जाना।" वह बहुत खुश हुआ। उसने धीमे स्वर में कहा- "भाई ! तुमने मेरी बहुत सेवा की । मैं तुम्हारी सेवा से खुश हूँ । अच्छा पधारो ! फिर कभी दर्शन देना। भगवान् तुम्हारा भला करे।"
इस प्रकार उस रोगपीड़ित का हार्दिक आशीर्वाद लेकर वह ऊँट वाला वहाँ से सन्तुष्ट होकर कुछ रात गए उस गाँव में पहुँचा, जहाँ पण्डितजी और सेठजी पहुँचे थे।
हाँ तो, मैं कह रहा था, पीड़ित को कोरा थोथा उपदेश देने या केवल सिक्के देने वाला सच्चे बन्धु की कोटि में नहीं आता। सच्चे बन्धु की परख रोग, पीड़ा विपत्ति या संकट आने पर ही होती है। यों तो प्रत्येक व्यक्ति अपने मुंह से कहेगा कि 'विश्व के सभी मानव मेरे बन्धु हैं।' जैसे कि पाश्चात्य विचारक सेनेका (Seneca) कहता है
"However degraded or wretched a fellow mortal may be, he is still a member of our common species."
"हमारा मानव-साथी चाहे जितना पतित या दुर्भाग्य पीड़ित हो, वह आखिरकार हमारी सर्वसाधारण जाति (मानव-जाति) का एक सदस्य है । सारी मानव जाति अगर परमात्मा को परमपिता मानती है तो सारे मानव हमारे बन्धु (बिरादर) ही ठहरेंगे।
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