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आनन्द प्रवचन : भाग ८
की अपेक्षा रहती है । अथवा मनुष्य बड़े परिवार वाला ही क्यों न हो, विदेश चला गया वहाँ बीमार हो गया, अथवा अकस्मात् रास्ते में कोई दुर्घटना हो गई, अथवा अत्यन्त दरिद्र हो गया; ऐसे समय में भी उसे किसी बान्धव की अपेक्षा रहती है, जो उसे समय पर तत्काल सहायता दे सके ।
__ संसार तो संकटों का घर है, शरीर बीमारियों का घर है, सांसारिक मनुष्य अनेक चिन्ताओं को लिए-लिए फिरता है, ऐसे समय में एकाकी चलना सहज नहीं होता । एकाकीपन के कष्ट या अन्य चिन्ताओं, संकटों या रोगों से त्रास पाने, सहानुभूति और सहयोग पाने के लिए उसे किसी न किसी बन्धु बान्धव की आवश्यकता रहती है, जो उसे संकट के समय आश्वासन दे सके, उसके दुःखदर्द को सहानुभूतिपूर्वक सुनकर हलका कर सके । मनुष्य को अपनी जीवन यात्रा सुख-शान्तिपूर्वक सरलता के साथ पूर्ण करने के लिए बान्धवों की कितनी आवश्यकता है ? यह किसी से छिपा नहीं है । जीवन यात्रा का लम्बा पथ अनेकों उतार-चढ़ावों, अनुकूलता-प्रतिकूलताओं, सुखद-दुःखद परिस्थितियों से मिला-जुला होता है। जब मनुष्य के सामने दुःखद परिस्थितियाँ, प्रतिकूलताएँ या पतनावस्था आती है, उस समय केवल परिवार से काम नहीं चलता, उस समय उसे एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता रहती है, जो उसको ऐसी संकट की घड़ियों में सहायता दे सके। उसे दुःख और विपत्ति के समय एक ऐसे सहयात्री की जरूरत रहती है, जो उसकी उस कठिन जीवन यात्रा को सरल, सुखद बनाने में मदद कर सके । भरापूरा परिवार होते हुए भी आकस्मिक संकट की घड़ियों में मनुष्य को किसी न किसी साथी की जरूरत पड़ती है।
व्यावहारिक जीवन में तो ऐसे किसी निःस्वार्थ बन्धु की अपेक्षा रहती ही है, आध्यात्मिक जीवन में भी ऐसे निःस्वार्थ हितैषी बन्धु की आवश्यकता से इन्कार नहीं किया जा सकता । मान लो, आप किसी न किसी दुर्व्यसन से ग्रस्त हैं, और इतने ग्रस्त हैं कि उसके कारण आपका जीवन पतित हो गया है, आपके परिवार वाले कुछ भी सहायता नहीं कर पा रहे हैं, आपके व्यसन को मिटाने में वे असहाय होकर देख रहे हैं, ऐसी स्थिति में आपको एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है, तो आपके प्रति सहानुभूति रखकर आत्मीयता के साथ आपके दुर्व्यसन को मिटाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा सके, आपको उक्त दुर्व्यसन से मुक्त करके या उक्त दोष या बुराई से छुटकारा दिलाकर आपका जीवनपथ धर्मयुक्त सरल सरस बना सके। क्या आप उस व्यक्ति को आध्यात्मिक बन्धु नहीं कहेंगे ? क्या दोषों में फंस जाने पर आपकी आत्मा को उनसे उबार कर सच्चे माने में उद्धार करने वाले हितैषी बन्धु की आपको आवश्यकता नहीं रहती !
क्या ऐसे निःस्वार्थ परमहितैषी उपकारी व्यक्ति को आप अपना आत्म-बन्धु नहीं मानेंगे और समय आने पर उससे अध्यात्म जीवन को शुद्ध बनाने में सहायता नहीं लेंगे?
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