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________________ सत्त्ववान् होते दृढ़धर्मी १९७ धन, पद, सत्ता या अधिकार का लोभ दिखाने पर अपने धर्म से विचलित होता है, वही सत्त्ववान् है, वही मनोबली है, परिस्थिति विजयी है, साहस और धैर्य से सम्पन्न है। शास्त्र में ऐसे ही व्यक्तियों को धर्मवीर या दृढ़धर्मी कहा गया है। ऐसे व्यक्तियों के रोम-रोम में, अन्तःकरण में, संस्कारों में धर्म रम जाता है, उन्हें कितना ही प्रलोभन दो या डराओ, वे धर्म से कदापि च्युत नहीं होते। ___कामदेव और अर्हन्नक श्रावक की धर्मदृढ़ता के विषय में पहले कह चुका हूँ, देवता द्वारा कठोर से कठोर परीक्षा करने पर भी वे धर्म पर अडिग, अटल रहे। जिनदास श्रावक की धर्मपरीक्षा करने के लिए देव ने उसके समक्ष उसके पाँच पुत्रों को एक-एक करके मार डाला, और उसे धर्म छोड़ने के लिए विवश किया, मगर धर्मवीर जिनदास श्रावक ने धर्म कतई न छोड़ा। भारतीय इतिहास में खासकर जैन-इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण मिलते हैं कि वे सत्त्ववान् पुरुष धर्म की परीक्षा के क्षणों में अपने धर्म से जरा भी इधर-उधर न हुए। राजगृही निवासी कसाई कालसौकरिक का पुत्र सुलस महामंत्री अभयकुमार की संगति से अहिंसक और दृढ़धर्मी बन गया। उसने निश्चय कर लिया कि वह कभी पशुवध नहीं करेगा। मृत्यु के समय उसके पिता कालसौकरिक ने अपने पास बुलाकर पूछा'बेटा ! मेरी एक इच्छा पूर्ण करोगे?" सुलस ने कहा-"पिताजी ! अगर मेरे धर्म में वह बाधक न होगी तो मैं अवश्य पूर्ण करूँगा।" काल सौकरिक ने प्रसन्न होकर कहा—' मेरी यह इच्छा है कि मेरी मृत्यु के बाद तुम घर के मुखिया बनो।" सुलस ने उसे स्वीकार किया। कालसौकरिक की मृत्यु के बाद सुलस को घर का मुखिया बनाने की रस्म अदा की गई। इसी बीच कुलदेवी के सम्मुख एक भैसा खड़ा करके उसका वध करने को कहा गया; परन्तु सुलस चुपचाप खड़ा रह गया, उसने तलवार ऊपर न उठाई । बुजुर्गों ने कहा- "बेटा ! जो मुखिया बनता है, उसे देवी को प्रसन्न करने के लिए रक्तदान करना पड़ता है।" सुलस बोला-'अच्छा ऐसी बात है तो लो यह कहकर उसने अपने पैर पर तलवार चलाई, उससे खून का फब्बारा छूटा, पैर कटकर जख्मी हो गया।" रोते हुए परिजनों ने कहा- "सुलस ! तुमने यह क्या किया ? भैंसे पर तलवार चलाना था।" सुलस बोला-किसी भी पशुपक्षी का वध करना तो मेरे धर्म के विरुद्ध है, मैं कदापि नहीं कर सकता । देवी को मैंने अपना रक्त दे दिया है। तब से सुलस की धर्म दृढ़ता के कारण सारे परिवार में सदा के लिए पशुवध बन्द हो गया। वास्तव में सत्त्वशील पुरुष इतने दृढ़धर्मी होते हैं कि वे प्राणों को छोड़ने के लिए तैयार होते हैं, पर स्वीकृत धर्म से विचलित होने को कदापि तैयार नहीं होते। नीतिकार भर्तृहरि ने सत्य ही कहा है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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