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________________ साधु-जीवन की कसौटी : समता धर्मप्रेमी बन्धुओ! आज मैं आपको एक विशिष्ट जीवन के सम्बन्ध में बताऊंगा। वह जीवन है—साधु-जीवन । साधु-जीवन कैसा होता है ? इसके सम्बन्ध में जब कोई जिज्ञासु पूछता है तो आचार्य का उत्तर मिलता है तो साहुणो जे समयं चरंति' साधु वे हैं, जो समता का आचरण करते हैं । अर्थात् साधु-जीवन की मुख्य पहचान है-वह समता से ओत-प्रोत है। साधु-जीवन का केवल निर्ग्रन्थ महाव्रती साधु से मतलब नहीं है, किन्तु विश्व में जितने भी, जिस प्रकार के भी, जिस किसी वेष में साधु पुरुष हैं, उनसे हैं। फिर वे चाहे जिसप्रकार के देश, वेष, लिंग, वय, जाति, सम्प्रदाय या धर्म के हों । चाहे वह गृहस्थ वेष में हो, चाहे भगवां वेष में। चाहे वह भारत का हो, या अन्य देशों का, चाहे वह स्त्री हो, अथवा पुरुष, छोटी उम्र का हो, चाहे प्रौढ़ या वृद्ध हो, चाहे ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो, या शूद्र, चाहे वह ओसवाल हो, अग्रवाल हो या और किसी जाति का हो, उसका धर्म-सम्प्रदाय जैन या और कोई, जो समता से ओत-प्रोत है, उसी का जीवन साधु-जीवन है। पिछले दो प्रवचनों में मैं साधु का अर्थ प्रसंगवश 'सज्जन' कर गया हूँ और समयं' का अर्थ क्रमशः समय और सिद्धान्त कर चुका हूँ, इस प्रवचन में समयं का तीसरा अर्थ 'समता' करके मैं गहराई से विश्लेषण करना चाहता हूँ। समता : साधु जीवन का मुख्य गुण साधु-जीवन के और भी कई गुण हैं, परन्तु समता साधु-जीवन का एक ऐसा गुण है, जिसमें दया, करुणा, मृदुता, सरलता, सत्यता, संयम, आदि सबका समावेश हो जाता है। जैन साधु तो जब साधु-जीवन अंगीकार करता है, तब यावज्जीवन समता के पाठ से ही करता है । १ प्राकृत भाषा में 'समय' यह शब्द स्त्रीलिंगी समता है । (औ द्वि-ए-व) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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