________________
१६८
आनन्द प्रवचन : भाग ८
प्रभाव भी दूसरों पर पड़ेगा और उसकी सिद्धान्तनिष्ठा भी मजबूत होगी। मनुष्य का रहन-सहन, बाह्य स्वरूप, प्रतिदिन का व्यवहार जीवन-कार्य उसके न बोलने पर भी स्वयं प्रकट हो जाता है। जो मनुष्य किसी भी कीमत पर अपने को बेचने को तैयार नहीं होते, जो भीतर से बाहर तक सुदृढ़ हैं। जो हृदय के सच्चे हैं, न गर्व करते हैं, न अनुचित हीनता दिखाते हैं, जो हिम्मत की शेखी नहीं बघारते, तथापि हिम्मतवर है। जो कार्य करने में कभी आलस्य नहीं करता, जो अपने परिश्रम की कमाई ही खाने-पहनने की इच्छा रखते हैं, ऐसे ही व्यक्ति चरित्र वाले कहे जा सकते हैं।
न्यूयार्क शहर के समाचार पत्र 'न्यूयार्क टाइम्स' के सम्पादक जार्ज जोन्स को वहाँ के धनवान लोगों ने कहा- "यदि आप हमारी बुराइयों के सम्बन्ध में पत्र में न लिखें या न छापें, चुप रहें तो हम आपको ३३ लाख रुपये देंगे।" उस चरित्र के धनी युवक ने उस प्रलोभन को कतई ठुकरा कर कहा-मैं तुम्हारे रुपयों से बिक नहीं सकता।"
यह है चरित्रबल का नमूना । सिद्धान्तनिष्ठा का छठा आवश्यक गुण है-साध्य-साधन-शुद्धता ।
षोडशवर्षीय हब्शी किशोरी 'महीलिया जेक्शन' गायिका थी। इसके पिता न्युआलियस के चर्च में पादरी का कार्य करते थे। चार वर्ष की थी, तभी से वह पिता के साथ चर्च जाया करती थी। पिता के आदर्शों के सांचे में ढली हुई महलिया को रिश्तेदारों, पड़ोसियों तथा क्लबों और होटलों के प्रतिनिधि उसे बहकाते, प्रलोभन देते कि तू होटलों और क्लबों में जाकर शृंगारिक या लोकरंजन के गीत गा, तू मालामाल हो जाएगी, व्यर्थ ही क्यों कष्टों और अभावों में जी रही है ? उसके कण्ठ में अद्भुत आकर्षण था। उसके गीतों की सर्वत्र प्रशंसा भी होने लगी थी। परन्तु वह सदा चर्च में जाकर धार्मिक गीत ही गाती थी। वह अन्य सब प्रलोभनों को विनम्रता से ठुकरा देती-"मेरे गीत केवल ईश्वरीय वाणी को ही ध्वनित कर सकते हैं अलबर्ट तथा संगीत एकादमी के संचालक ने महीलिया को होटलों में गीत गाने की राय दी, ताकि प्रति सप्ताह हजारों डालर कमा सके, किन्तु उसने स्पष्ट कह दियामेरा अन्तःकरण हलके बाजारू तथा कामवासना जगाने वाले शृंगारिक गीतों को कतई पसंद नहीं करता।" वह अपने साध्य के लिए शृंगारगीत जैसे गलत साधनों को कभी नहीं अपनाती । आखिर शिकागो के चर्चों में उसके भक्तिगीत गूंज उठे, वह लोकप्रिय हो गई, उसकी सिद्धान्तप्रियता भी सफल हई।
सिद्धान्तनिष्ठा के लिए सातवाँ आवश्यक गुण है-विचार के अनुरूप आचार । यह बड़ी टेढ़ी खीर है । बड़े-बड़े साधक इस मामले में लड़खड़ा जाते हैं। परन्तु जिनके विचार केवल विचार नहीं होते, उनके साथ आचार भी घुलामिला हो, वे ही सिद्धान्तनिष्ठा की कसौटी में सही उतरते हैं।
गुजरात के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री नानाभाई भट्ट प्रखर सिद्धान्तवादी थे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org