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________________ सज्जनों का सिद्धान्तनिष्ठ जीवन १६७ से छुटकारा पाने के लिए धर्मध्वजी लोगों ने सती-प्रथा का प्रचार कर रखा था। अतः जगमोहनराय की पत्नी को भी सती होने के लिए उकसाया गया। वह बेचारी किसी तरह तैयार हो गई। चिता में आग लगाई गई। अग्नि की करान ज्वालाओं का जब शरीर से स्पर्श असह्य हो उठा तो उसका धैर्य टूट गया। वह कराहती हुई अधजली ही चिता से बाहर भागने लगी। किन्तु धर्मध्वजियों और कुटुम्बियों ने बांस का प्रहार कर उसका सिर फोड़ डाला तथा उस अधजली को फिर से चिता में झौंक दिया। सती का दर्दभरा विलाप उपस्थित लोगों को सुनाई न पड़े इसके लिए ढोल, नगारे और शंख बजाए जाने लगे। युवक राममोहनराय की आँखों में इस नृशंस क्रूर कृत्य को देख कर आँसू उमड़ आए। 'अहिंसा परमो धर्मः' के सिद्धान्त की हत्या होते देख उन्होंने चिता की परिक्रमा करके श्मशान भूमि में ही दृढ़ संकल्प किया-जब तक इस क्रूर नरहत्या की प्रथा का अन्त न कर दूंगा, तब तक चैन से नहीं बैलूंगा।" और सचमुच राजा राममोहन राय ने सती प्रथा कानूनन बन्द-करा कर ही दम लिया । ऐसे संकल्प बल से ही वे अहिंसा सिद्धान्त की रक्षा कर सके । सिद्धान्तनिष्ठा के लिए तीसरा आवश्यक गुण है-धर्म पर अविचल आस्था। सत्य, अहिंसा आदि धर्म पर अविचल आस्था अथवा अपने कर्तव्य और दायित्व रूप धर्म पर अटल श्रद्धा हो तो मनुष्य सिद्धान्तनिष्ठ रह सकता है। धर्म पर अटल आस्था न हो, तो मनुष्य अपने सिद्धान्त पर टिक नहीं सकता। रूपनगर की राजकुमारी चंचलकुमारी के रूप, लावण्य पर बादशाह औरंगजेब फिदा हो गया। बादशाह ने चंचलकुमारी को अपने हृदय में लाने का विचार बनाया। इसलिए रूपनगर के जागीरदार ठाकुर के पास जवाहरातों की एक बड़ी भेंट भेजी, उसे देखकर वह चौंका और जब उसे बादशाह की बदनीयत का पता चला तो भेट वापस कर दी। परिणाम यह हुआ कि बादशाह लाखों की फौज के साथ चढ़ आया। इधर चंचलकुमारी के पिता के पास मुट्ठीभर फौज थी, फिर भी वह धर्मरक्षा के लिए सर्वस्व बलिदान देने को तैयार हो गया। यह समाचार जब मेवाड़ के तत्कालीन राणा राजसिंह को मिला तो वह अपने राजदरबारियों के विरोध के बावजूद अत्याचारी का प्रतिरोध करना अपना धर्म समझ कर रूपनगर के जागीरदार की सहायता के लिए आ डटा । राणा राजसिंह ने धर्म का आधार लेकर अत्याचारी से युद्ध किया, विजय धर्मनिष्ट राणा की ही हुई। सिद्धान्तनिष्ठा के लिए चौथा आवश्यक गुण है-चरित्रबल । जिसमें कोरा साम्प्रदायिक कट्टरता का धर्म होगा, ईमानदारी, शील सत्यता, अहिंसा आदि चारित्रबल नहीं होगा, वह व्यक्ति कभी सिद्धान्तनिष्ठ नहीं हो सकता है। दुनिया में अगर कोई अपना प्रभाव दूसरे पर डाल सकता है तो चरित्रबल ही है । चाहे मनुष्य को शिक्षा कम मिली हो, उसमें शक्ति कम हो, उसके पास जमीन जायदाद भी न हो, समाज में उसे कोई खास पदवी प्राप्त न हो, पर यदि उसका चरित्र सुदृढ़ एवं ऊँचा है तो उसका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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