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________________ १४२ आनन्द प्रवचन : भाग ८ करके पधारे हैं, लेकिन आज तो मुझे समय नहीं है, कई आवश्यक काम निपटाने हैं । आप आगामी रविवार को पधारिए ।" सन्त ने सिर हिलाते हुए कहा - " सेठ ! अगले रविवार को तो तुम इस दुनिया में नहीं रहोगे ।" सेठ – "नहीं महाराज ! ऐसी क्या बात है ? अभी तो मैं हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ बैठा हूँ। मेरा अभी तो कुछ बिगड़ने वाला नहीं है । आप कृपा करके रविवार को ही पधारिए । “उससे पहले तो मुझे समय नहीं मिलेगा ।" सन्त चले गए। सेठ को गुरुवार को ही जोर का बुखार आया । मरण शय्या पर पड़ा पड़ा छटपटाने लगा । चिकित्सकों का ताँता लग गया, परन्तु उनके इलाज से कोई फायदा नहीं हुआ। काफी धन खर्च किया गया, पर सब व्यर्थ । सन्त शुक्रवार को ही उसके यहाँ पहुँचे । महाराज श्री को देखते ही सेठ की आँखों से श्रद्धा भरे आंसू उमड़ पड़े। उनके वचन पर प्रतीति हुई । सेठ पश्चातापयुक्त वाणी में बोले - "गुरुदेव ! आपकी बात सत्य निकली । मैंने आपकी बात न मानी । अब तो मैं असाध्य बीमारी में पड़ा हूँ । मैंने जिन्दगी का बहुत सा समय व्यर्थ खो दिया, अब क्या हो सकता है ?" "संत ने कहा - सेठ ! घबराओ मत ! जो समय खो दिया, वह तो अब आ नहीं सकता । अब तो तेरे पास दो दिन का समय है । इन दो दिनों में भी तू चाहे तो अपने अन्तिम जीवन को सुधार सकता है " सेठ ने कहा - " आप जो भी मेरे योग्य बताएँगे, वैसे ही त्याग, नियम लेकर अपने अन्तिम समय को सार्थक करूँगा । "संत ने कहा - " देख आज शुक्रवार है, कल शनिवार को ४ बजे तू इस लोक से विदा होने वाला है । उससे पहले सभी से क्षमा मांग ले । कुटुम्ब कबीले पर मोह-ममता छोड़ दे । जो भी त्याग, प्रत्याख्यान नियम, दान करना हो, कर ले । धन से भी ममता छोड़ दो। बस इतनी-सी बातें कर लेगा तो तू अपना बेड़ा पार कर लेगा ।" सेठ ने संत के कहे अनुसार सब कुछ करके अन्तिम समय में हँसते-हँसते प्राण छोड़े ।” अवसर चूकने के बाद वास्तव में, मनुष्य को 'समय नहीं हैं का बहाना छोड़कर अपनी दिनचर्या में से अमुक समय निकाल ही लेना चारिए धर्माचरण के लिए । उसे अन्तिम समय में या बुढ़ापे में समय को, धर्माचरण में सार्थक करने की बात पर भरोसा नहीं रखना चाहिए और 'जब से जागे तभी से सबेरा' की कहावत के अनुसार अपना समय का सदुपयोग करने का अभ्यास करते रहना चाहिए । इसीलिए अवसर को चूकना नहीं चाहिए । जो अवसर इस समय है, वह लाख मेहनत करने पर भी वापिस हाथ नहीं आएगा । कहा भी है "निर्वाणदीपे किमु तैलदानं चौरे गतेवा किमु योगते किं वनिता विलासः पयोगते किं खलु - दीपक बुझने के बाद तेल डालने से क्या लाभ ? माल लेकर चोर के चले जाने के बाद सावधान होने से क्या फायदा ? जवानी चले जाने के बाद स्त्रीसंगम का क्या Jain Education International सावधानम् । सेतुबन्धः ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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