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सज्जन होते समय-पारखी
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नेपोलियन बोनापार्ट इसलिए महान् बना कि वह समय का बड़ा पाबन्द था। एक बार उसने अपने प्रधान सेनापति को अपने यहाँ भोजन का निमंत्रण दिया। सेनापति के पहुंचने में देर हो गई। अतः जब वह पहुँचा तो नेपोलियन अपना भोजन लगभग समाप्त कर चुका था। उठकर हाथ-मुंह धोने के पश्चात् नेपोलियन ने उससे कहा-सेनापतिजी ! भोजन का समय तो बीत गया, अब आइए अपना काम शुरू करें।" सेनापति को देर से आने का दण्ड भोगना पड़ा।
राष्ट्रपति जार्जवाशिंगटन भी समय का बहुत कड़ाई से पालन करते थे। एक बार उनके सेक्रेटरी ने विलम्ब से आने के लिए क्षमा मांगते हुए कहा कि उसकी घड़ी लेट चलने लगी थी। वाशिंगटन ने तुरन्त आदेश सुनाया-"महाशय ! या तो आप दूसरी घड़ी ले लीजिए, या फिर मुझे दूसरा सेक्रेटरी रखना पड़ेगा।"
वास्तव में थोमसपेन का यह वाक्य बहुत ही उपयुक्त है कि 'समय की कसौटी पर ही मनुष्य की आत्मा की परीक्षा होती है।"
समय-सम्पदा खोने वालों की हालत बहुत से लोग देवी वरदान जैसे अमूल्य समय को पाकर उसके आधार पर बहुत-सी उपलब्धियाँ और शक्तियाँ प्राप्त करने के बदले उसे पाप और अधर्म में, गप्पों में, व्यसनों में आलस्य में खोते चले जाते हैं। वे टूटते, मिटते और गलते व जलते हुए समय को देख नहीं पाते, न देखने की इच्छा होती है, न ही उनका ध्यान होता है। इस प्रकार समय के प्रति अन्यमनस्क रहने वाले या उपेक्षा बरतने वाले व्यक्ति अपनी क्रमिक भावमृत्यु-असामयिक मृत्यु करते चले जाते हैं। यह एक प्रकार की आत्महत्या (अपने अन्य गुणों की हत्या) करना है। इसप्रकार समय की असामयिक मृत्यु की भयंकरता तथाकथित भूतप्रेतों से कम नहीं ।
प्रकृति ने किसी को गरीब या अमीर नहीं बनाया। उसने तो मुक्तहस्त से सबको अपना अमूल्य वैभव लुटाया है। श्रम सामर्थ्य एवं समय का अनुदान इन दो अस्त्रों से सुसज्जित करके सभी मनुष्यों को प्रकृति माता ने जीवन के समरांगण में भेजा है-विजयश्री प्राप्त करने के लिए। लेकिन मनुष्य जब प्रकृतिप्रदत्त इस अमूल्य समय धन का लाभ नहीं उठा पाते और समय को यों ही खोकर घाटे में रहते हैं। जो बहुमूल्य समयरत्नों और मोतियों को फटी थैली में भरकर चलते हैं, रास्ते में उन्हें टपकाते जाते हैं घर पहुँचते-पहुँचते उस निधि को गंवाकर खाली हाथ रह जाते हैं, इसी प्रकार समय की उपेक्षा करने वाले अपनी समस्त निधि दूसरे लोक पहुँचते-पहुँचते खो बैठते हैं। ऐसे लोग अपने जीवन के साथ क्रूर खिलवाड़ करते हैं, अपने भविष्य के साथ वे एक मर्मभेदी मजाक करते हैं। वे लोग समय-सम्पदा को खोते चले जाते हैं। उसके परिणामस्वरूप उनका व्यक्तित्व दीन-हीन, दयनीय हो जाता है। फिर वे गरीबी का, अशिक्षा का, अज्ञान का या अयोग्यता एवं अक्षमता का रोना रोते रहते हैं, अपने जीवन में वे विभिन्न अभावों की शिकायत करते हैं। कोई
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