________________
१३६
आनन्द प्रवचन : भाग ८
अच्छी तरह समय व्यवस्थित करना निश्चय ही भलीभांति व्यवस्थित दिमाग की निशानी है ।'
वस्तुतः समयपालन व्यवस्थित जीवन की कुंजी है ।
उच्च साधक के लिए समय- पालन जरूरी
उच्च साधकों को अपना प्रत्येक कार्य निश्चित समय पर करना चाहिए । इसीलिए भगवान महावीर ने समय- पालन पर बहुत जोर देकर कहा है " काले कालं समायरे "
साधु को प्रत्येक कार्य उसके निश्चित समय पर करना चाहिए अकाल में कोई भी कार्य करना अच्छा नहीं होता । अकाल में स्वाध्याय, अकाल में प्रतिलेखन, अकाल में प्रतिक्रमण, अकाल में आहार- पानी और अकाल में व्याख्यान या बिहार आदि करना अनिष्ट कर होता है, उससे जीवन अस्वाभाविक और अस्वस्थ बन जाता है । अगर कोई साधु रात्रि को सबके सोने पर व्याख्यान देना चाहे या व्यावसायिक लोगों के कार्य के समय में व्याख्यान देना चाहे तो रुचिकर नहीं होता ।
एक साधु रात्रि को स्वाध्यायकाल को छोड़कर शास्त्रस्वाध्याय कर रहा था । एक देव ने यह देखा तो उन्हें सावधान करने का विचार किया। उसने एक गूजर IT वेष बनाया और आधीरात को सिर पर मट्ठे की मटकी रखकर जहाँ वह साधु स्वाध्याय कर रहा था, वहाँ आकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा--' - " मट्ठा लो, कोई मट्ठा लो ।”
साधु ने उसे इस प्रकार चिल्लाते देख कहा - यह कोई मट्ठा बेचने का समय हैं । इस समय तो सभी लोग सो गए हैं, तुम्हारा मट्ठा कौन लेगा ?” देव ने सुन्दर अवसर समझकर कहा - "यह कोई स्वाध्याय करने का समय है ? आप अकाल में स्वाध्याय कर रहे हैं | अपनी ओर तो देखिये ।" साधु बुद्धिमान था । तुरन्त इस संकेत को समझकर उसने स्वाध्याय करना बन्द कर दिया ।
हाँ तो, साधुजीवन की जितनी भी चर्याएँ हैं, सभी के लिए समय नियत है या नियत किया जा सकता है। नियत समय पर ही साधु को अपनी चर्य करने का श्रमण भगवान् महावीर ने आदेश दिया है। ताकि उसका जीवन व्यवस्थित ढंग से उत्साह पूर्वक संयमनिष्ठ रहे ।
महान् बनने का उपाय समय- पालन
संसार में जितने भी महान् पुरुष बने हैं, चाहे वे आध्यात्मिक क्षेत्र में रहे हों, चाहे सामाजिक या राजनैतिक क्षेत्र में, सबने समय का कडाई से पालन किया है । समय पर उचित कार्यकरने और व्यर्थ समय न खोने की सावधानी ने उन्हें महान् पद पर पहुँचाया है । महान् बनने की कुंजी समय-सम्पदा का अपव्यय करते हुए उसका सदुपयोग करना है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org