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________________ सज्जन होते समय-पारखी १३५ सहसा वाशिंगटन के मस्तिष्क में एक विचार आया-"मेहमानों की प्रतीक्षा न की गई तो वे नाराज हो जाएँगे । तो फिर क्या मीटिंग स्थगित की जाए ! नहीं-नहीं, यह समय सारे राष्ट्र के जीवन से सम्बन्धित है। क्या अपनी सुविधा के लिए राष्ट्रका अहित किया जाये ? क्या दो-तीन व्यक्तियों की प्रसन्नता के लिए राष्ट्रहित का उत्सर्ग करना बुद्धिमानी होगी ?" उनके हृदय ने दृढ़तापूर्वक कहा-"नहीं, नहीं, जब प्रकृति अपने नियम से एक सैकण्ड भी आगे-पीछे नहीं होती। जिस दिन, जितने बजे, सूर्य को निकलना होता है, उस दिन, उतने ही बजे बिना किसी की परवाह किये सूर्य ऊग जाता है, तो क्या मुझे ईश्वरीय आदेश का पालन करने में भय या संकोच क्यों होना चाहिए ?" नौकर को सम्बोधित कर उन्होंने कहा- ठीक है । शेष प्लेटें उठालो हम अकेले ही भोजन करेंगे । मेहमानों की प्रतीक्षा नहीं करनी है।" ___ आधा भोजन समाप्त हो गया, तब मेहमान पहुँचे। उन्हें देर से आने का बहुत दुःख भी हुआ, कुछ अप्रसन्नता भी हुई। वे भोजन में बैठे, तब तक वाशिंगटन ने अपना भोजन समाप्त किया और निश्चित समय पर वे मीटिंग में भाग लेने विदा भी हो गए। __ मेहमान इसी बात पर रुष्ट थे कि उनकी १५ मिनट प्रतीक्षा नहीं की गई, अब उन्हें और भी कष्ट हुआ। कि मेजबान अपना भोजन समाप्त करके चले भी गए अतः किसी तरह भोजन करके मेहमान भी अपने घर लौट गए। __ सैनिक कमाण्डरों की बैठक में पहुँचने पर वाशिंगटन को पता चला कि यदि बे समय पर नहीं पहुँचते तो अमेरिका के एक भाग में भयंकर विद्रोह हो जाता। समय पर पहुँच जाने के कारण स्थिति संभाल ली गई और एक बहुत बड़ी जनधन की होने वाली हानि को बचा लिया गया। । इस बात का पता कुछ समय बाद जब उन मेहमानों को चला तो उन्होंने भी अनुभव किया कि प्रत्येक कार्य निश्चित समय पर न करने से या उसमें आलस्यप्रमाद या ढील कर देने से कितनी भयंकर परेशानियाँ आ सकती हैं। इसके विपरीत समय पर काम करने से जीवन सुचारु-रूप से चल सकता है । अतः समय की नियमितता का अतीव महत्व है। वे मेहमान फिर से राष्ट्रपति के यहाँ गये और उनसे उस दिन हुई भूल के लिए क्षमा मांगी। राष्ट्रपति वाशिंगटन ने कहा-इसमें क्षमा की कोई बात नहीं है, पर हाँ, जिन्हें अपने जीवन की व्यवस्था, परिवार, समाज और देश की उन्नति का ध्यान हो, उन्हें समय का पालन कड़ाई से करना चाहिए।" पिटमैन (Pitman) ने समयबद्ध जीवन को व्यवस्थित दिमाग कहा है “Well arranged time is the surest mark of a well arranged _mind." Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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