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आनन्द प्रवचन : भाग ८
यानी श्वासोच्छ्वास के साथ जीवन की अन्य चीजें बंधी हुई हैं। धन-सम्पत्ति या सुखसामग्री आदि तो बाद की चीजें हैं, मनुष्य का शरीर, इन्द्रियाँ, बुद्धि, मन आदि जो निकट की चीजें हैं, वे भी मनुष्य के श्वासोच्छ्वास के चलने पर ही हैं, श्वासोच्छ्वास के समाप्त हो जाने के साथ इन पर से भी स्वामित्व समाप्त हो जाता है, शरीर आदि का तो अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। एक श्वास के आने-जाने के साथ ही मनुष्य जीवन की अमूल्यनिधि के रूप में एक इकाई कम हो गई । मनुष्य जिस दिन से माता के गर्भ में आता है, उसी दिन से वह मृत्यु की ओर क्रमशः जाता है। नीतिकार भी यही कहते हैं--
यामेव रात्रि प्रथमामुपैति, गर्भे निवासी नरवीर लोकः । ततः प्रभृत्यस्खलित प्रयाणो,
स प्रत्यहं मृत्युसमीपमेति ॥ जिस पहली रात्रि को मनुष्य इस लोक में माता के गर्भ में आकर निवास करता है, तभी से वह प्रतिदिन अबाधरूप से सतत गति करता हुआ मृत्यु के निकट पहुँचता रहता है।
इसका मतलब है, मनुष्य का आवीचि (द्रव्य) मरण तो श्वास लेने और छोड़ने के साथ होता रहता है, वह क्रमशः मरता जाता है । जीवन की सम्पदा का एक-एक कण, एक-एक क्षण के साथ समाप्त होता चला जाता है। बूंद-बूंद पानी टपकाते रहने से भरा-पूरा, किन्तु सूराक वाला घड़ा कुछ ही समय में खाली हो जाता है । जीवन की अमूल्य आयुसम्पदा हर सांस के साथ घटती चलती जाती है। क्रमशः हमारा कदम मरण की ओर ही उठता है। आयुवृद्धि के साथ मरण का दिन निकट से निकटतर आता चला जाता है। जीवन की सूक्ष्म सत्ता समय के रूप में अभिव्यक्त होती है। अतः यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह समय का किसप्रकार और किस प्रयोजन के लिए उपयोग करता है।
सज्जन पुरुष समय का महत्व और मूल्य समझता है। वह समग्र जागरूकता के साथ समय के सदुपयोग के लिए तत्पर रहता है। समय पर काम करने वाले समय विवेकी सज्जन की सारी शक्तियाँ उपयोग में आने पर भी अक्षय बनी रहती हैं। समय पर काम करने का अभ्यास एक सजग प्रहरी की तरह ही होता है, जो किसी भी परिस्थिति में उसको अपने कर्तव्य से विमुख या विस्मृत नहीं होने देता । समय आते ही सिद्ध किया हुआ अभ्यास उसे निश्चित कार्य की याद दिला देता है ।
और प्रेरणापूर्वक उसमें लगा भी देता है। समय आते ही उक्त कार्य-योग्य शक्तियों में जागरण एवं सक्रियता आ जाती है, जिससे मनुष्य निरालस्य रूप से अपने काम में लग कर उसे निर्धारित समय में ही पूरा कर लेता है। कार्यों एवं कर्तव्यों की पूर्णता ही जीवन की पूर्णता है, पूर्णता के साथ जीवनयापन करना है। वह पूर्णता
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