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________________ १२८ आनन्द प्रवचन : भाग ८ सेवा समझकर उत्साहपूर्वक व्यवस्था के वातावरण में किया जाए तो वह आज की अपेक्षा आधे समय में पूरा हो सकता हैं। साथ ही उत्साह और मनोयोग के साथ कार्य करने में थकान का अनुभव नहीं होता, बल्कि वह मनोरंजन और आनन्ददायी बन जाता है। __बिहार के एक गाँव में कुछ श्रमिक वर्ग के लोग खाली बैठे हुक्का गुड़-गुड़ा रहे थे और गपशप लगा रहे थे । कुछ विदेशी पर्यटक भूदान-ग्रामदान के कार्य देखने की उत्सुकता से लोकनेता जयप्रकाशनारायण के साथ घूम रहे थे। उन्होंने जब इन श्रमिकों को बेकार बैठे देखा तो कहा- 'आप तो कहते हैं भारत बहुत गरीब देश है परन्तु इन लोगों को यों ही बैठे देखते हुए लगता है, भारत सुखी और अमीर देश है।" श्री जयप्रकाशजी ने कहा-ये लोग अपना समय व्यर्थ बर्बाद कर रहे हैं, काम से जी चुराते हैं। काम तो भारत में इतने पड़े हैं कि उन कामों में इन सबको लगा दिया जाए तो भी आदमियों की कमी पड़ेगी।" हमारे देशवासियों की अकर्मण्यता और व्यर्थ समय बिताने की वत्ति की विदेशियों पर बहुत बुरी छाप पड़ती है। विदेश में कोई भी व्यक्ति कार्य के दिनों या घंटों में निकम्मा बैठा गपशप नहीं लगाएगा न काम से जी चुराएगा। हमारे देश के लोगों को समय बर्बाद करने के दुष्परिणाम का एक नमूना देखिए दिल्ली में गाँधी मार्केट सदर बाजार के दुकानदार श्रीरामलाल स्टेट बैंक की सदर बाजार शाखा में १२०० रुपये जमा कराने गए थे। वे वहाँ काउंटर पर रुपये रखकर किसी अजनवी से गप्पें लड़ाने लगे। उसने अपनी बातों में इतना फंसा लिया कि चुपके से कोई रुपये उठाकर चलता बना। समय व्यर्थ खोने का कितना भयंकर दण्ड भुगतना पड़ा। कई लोग बुढ़ापे का बहाना बनाकर काम से जी चुराते हैं। ऐसे लोग कई दुर्व्यसनों में पड़कर अपना अमूल्य समय खोते देखे गए हैं । बुढ़ापे में भी मनुष्य लोकोपयोगी सेवाकार्य या ऐसे हलके-फुलके काम करके समय का उपयोग कर सकता है । संत विनोबा, जयप्रकाशजी, मोरारजी देसाई, आदि इस बुढ़ापे में भी कितना सेवा-कार्य कर रहे हैं । स्व० राजगोपालचारी एवं स्व० नेहरू जी भी बुढ़ापे में भी नौजवानों की तरह उत्साहपूर्वक देशसेवा के कार्य करते थे । संसार के सभी विचारशील लोग, जो जीवन और समय का मूल्य समझते हैं, जवानी-बुढ़ापे का ख्याल किये बिना निरन्तर नियत रूप से कुछ न कुछ उपयोगी कार्य करने में संलग्न रहते हैं। समय और सामर्थ्य रहते हुए भी जो आलसी बनकर पड़ा रहता है, वह अपने जीवन के कीमती क्षणों को व्यर्थ खो रहा है। आजीविका-उपार्जन के लिए निर्धारित सभा के अतिरिक्त भी हर आदमी के पास काफी समय बचता है। उसे अध्ययन में, अपनी योग्यता बढ़ाने में, व्यवस्था में, सेवा कार्यों में, परमार्थ में या सफाई में, अथवा अन्य सामाजिक उपयोगी कार्यों में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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