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________________ सज्जन होते समय पारखी १२६ लगाया जा सकता है । एकमात्र आजीविका कमाना ही समय का सदुपयोग नहीं है । अपने में वे अन्य विशेषताएँ भी उत्पन्न करनी चाहिए, जो आपको उच्चकोटि के सत्पुरुषों की श्रेणी में पहुँचा सके । अगले जन्म के लिए श्रेष्ठ संस्कार धारण करके जाने से ही अपने उत्कर्ष की प्रक्रिया आगे चलती रह सकती है । या धर्मकार्यों में, धर्माचरण में अपना शेष समय लगाना चाहिए । जो लोग यह शिकायत करते हैं कि हमें समय नहीं मिलता, वे समय का सदुपयोग करना जानते नहीं, या जानबूझ कर आलस्य या दुर्व्यसनों में पड़े रहकर अपने समय को व्यर्थखोते हैं । महाकवि गेटे (Goethe ) कहते हैं - “We always have time enough, if we will but use it a right.” - हमारे पास पर्याप्त समय होता है, बशर्ते कि हम इसका सही उपयोग करें । एक बार प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार डॉ० जानसन से एक मित्र ने अपनी परेशानियों का उल्लेख करते हुए कहा - देखिये न, दिन-रात में कुल मिलाकर २४ घंटे होते हैं । इनमें से ८ घंटे सोने में, ७ घंटे ऑफिस में और बाकी के ८ घंटों में न जाने कितने काम करने पड़ते हैं - खाना-पीना, हजामत बनाना, भेंट मुलाकात, चिट्ठी पत्री आदि सब काम इन्हीं ८ घंटों में निपटाने पड़ते हैं। मैं तो बेहद परेशान हो उठा ! ऑफ इतनी व्यस्त जिंदगी ! यहाँ तक कि लाख इच्छा रहने पर भी मैं न किसी धार्मिक चर्चा में शामिल हो पाता हूँ न धर्मग्रन्थों को पढ़ने के लिए ही अवकाश निकाल पाता हूँ ।" डा० जॉनसन क्षणभर मुस्कराये पर शीघ्र ही चेहरे पर गम्भीरता लाकर बोले - " तब तो मुझे भी भूखों मरना पड़ेगा ।" क्यों ?" मित्र ने पूछा । डॉ० जॉनसन - " आप जानते ही हैं कि मैं काफी खाने वाला आदमी हूँ । लेकिन दुनिया में अन्न उपजाने के लिए सिर्फ चौथाई जमीन है, उसमें भी न जाने कितने पहाड़, समुद्र, नदियाँ, ऊबड़-खाबड़ स्थल और रेगिस्तान हैं, जबकि संसार में मेरे जैसे पेट भरने वाले करोड़ों हैं ।" मित्र बोले- " आप तो व्यर्थ ही परेशान होते हैं। दुनिया में सदा से करोड़ों लोग रहते आए हैं । उनके भोजन का इंतजाम भी होता आया है । फिर आपको किस बात की चिन्ता है ?" " आप ठीक कहते हैं, " डॉ० जॉनसन फिर मुस्करा कर बोले - " पर अगर मेरे जीवन का प्रबन्ध हो सकता है तो फिर कोई कारण नहीं है कि आपको धर्मचर्चा में शामिल होने या धर्मग्रन्थ पढ़ने का समय न मिले।" मित्र को निरुत्तर होकर डॉ० जॉनसन की बात माननी पड़ी । समय के अभाव की शिकायत कितनी थोथी है ? यह महात्मागाँधी जी द्वारा दिये गये एक दबंग उत्तर से देखिये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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