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________________ ८२ आनन्द प्रवचन : सातवां भाग करत-करत धन्ध, कछु नहिं जाने अन्ध, आवत निकट दिन आगले चपाक दे। जैसे बाज तीतर के दाबत है अचानक, जैसे वक मछली कॅ लीलत लपाक दे ॥ जैसे मक्षिका की घात, मकरी करत आय, जैसे साँप मूसक कूँ ग्रसत गपाक दे । चेत रे अचेत नर, सन्दर संभार राम, ऐसे तोहि काल आय लेइगो टपाक दे ॥ कवि ने मानव को बोध देते हुए कहा है---अरे, अन्धे पुरुष ! अपने सांसारिक धन्धों में लगे रहने के कारण तुझे यह भी मालूम नहीं है कि तेरे अन्तिम दिन नजदीक आ रहे हैं। जिस प्रकार बाज तीतर को अचानक दबा लेता है, बगुला मछली को चट से निगल जाता है, तथा जिस तरह मकड़ी मक्खी पर घात लगाए रहती है और सर्प चूहे को दबोच लेता है, उसी प्रकार काल भी तुझे अचानक ही किसी समय झपट्टा मारकर ले जाएगा। अत: अब तू सावधान हो जा और राम का नाम स्मरण कर । बन्धुओ ! प्रसंगवश मैंने कवि सुन्दरदासजी का यह पद्य आपके सामने रखा है कि आप भी कालबली की निर्ममता और किसी भी क्षण प्राणी को ले जाने वाली क्षमता को पहचानकर सावधान हो जाँय तथा आज विजयादशमी के पावन दिन से ही कर्मों पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न शुरू करें। खेद की बात तो यह है कि अनेक व्यक्ति प्रायः यही कहा करते हैं"महाराज ! क्या करें सारी उम्र तो घर-गृहस्थी के धन्धों में बीत गई । लड़केलड़कियों की शादियाँ की, मकान बनवाया, जमीन खरीदी और व्यापार बढ़ाया। अब तो यह उम्र हो गई है, भला अब हमसे क्या हो सकता है ?" ___मुझे ऐसे भोले व्यक्तियों पर बड़ा तरस आता है और उनसे यही कहता हूँ"भाई ! बीते हुए को भूलकर बिना विलम्ब किये आत्मा का कल्याण करने का उपाय प्रारम्भ कर दो। आत्म-मुक्ति या कर्मों से छुटकारा होने के लिए समय का कोई प्रतिबन्ध नहीं है । महत्त्व केवल भावनाओं का है । अगर भावना उत्कृष्टता को प्राप्त करती जाँय तो बरस, महीने और दिनों की तो बात क्या है, कुछ क्षणों में ही वे आश्चर्यजनक परिवर्तन ला देंगी।" शास्त्रों में कहा भी है-- मनोयोगो बलीयांश्च, भाषितो भगवन्मते । यः सप्तमी क्षणार्धन, नयेद्वा मोक्षमेव च ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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