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________________ आध्यात्मिक दशहरा मनाओ! ८१ कुछ बड़ा होने पर जब शंबुक एक बार अपने मामा रावण के यहाँ गया तो उसने वहाँ एक खड्ग देखी । उसके हृदय में वैसी ही खड्ग पाने की अभिलाषा हुई अतः जब उसके विषय में जानकारी की तो ज्ञात किया कि इस खड्ग को प्राप्त करने के लिए बड़ी तपस्या करने की आवश्यकता होती है । वस्तुतः तपस्या के बिना कोई शुभ फल प्राप्त नहीं किया जा सकता। अंग्रेजी में एक कहावत है 'No pains, no gains' कष्ट प्राप्त किये बिना कुछ भी नहीं मिलता। मनुस्मृति में भी यही कहा है यद् दुस्तरं दुरापं यद् दुर्ग यच्च दुष्करम् । सर्व तु तपसा साध्यं, तपो हि दुरतिक्रमम् ॥ अर्थात्-जिसको तैरना कठिन है, जिसे पाना मुश्किल है, जो दुर्गम है और दृष्कर भी है, वह सब कुछ कठिन कार्य भी तप के द्वारा सम्पन्न किया जा सकता है । तप के प्रभाव से ही समस्त कठिनाइयाँ मिट सकती हैं। . तो ज्ञान रूपी सूर्यहंस खड्ग पाना भी सरल नहीं, अपितु महाकठिन कार्य था। किन्तु शंबुक ने उसे प्राप्त करने की ठान ली। स्वाभाविक था कि क्रोध रूपी पिता और कुमतिरूपी माता, ज्ञानरूपी खड्ग को प्राप्त करने की आज्ञा कैसे देते ? दोनों ने बहुत मना किया पर शंबुक माना नहीं और उपशम रूपी वन में औंधे मुंह लटककर दृढ़तापूर्वक साधना करने लगा। दो-चार दिन और कुछ महीने ही नहीं वरन् बारह वर्ष की घोर साधना हो जाने पर सूर्यहंस खड्ग सिद्ध हुआ और उलटे लटके हुए शंबुक के समीप आकर उसी झाड़ी पर टिक गया जिसमें शंबुक साधना-लीन था। ___ अल्पकाल में ही शंबुक उस घोर तपस्या के फलस्वरूप दैविक खड्ग को अपने हाथों में उठा लेता, किन्तु विधि का विधान कुछ और ही था । वास्तव में ही विधि के विधान का या जिसे हम होनहार कहते हैं, उसका करिश्मा निराला ही होता है। मनुष्य सोचता है कुछ, और होता है कुछ । बारह वर्ष की तपस्या का फल सूर्यहंस खड्ग जब शंबुक के समीप आ गया था और वह उसे प्राप्त करने ही वाला था कि कालबली आकर शंबुक को उठा ले गया । कोई भी नहीं कह सकता कि काल का झपट्टा उस पर कब, किस समय और कैसे हो जाएगा। सुन्दरदासजी ने इस विषय में एक सुन्दर पद्य लिखा है वह इस प्रकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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