________________
सत्य ते असत्य दिसे ३७ सेठानी बड़ी शांत और आध्यात्मिकता के ज्ञान से ओत-प्रोत थी उसने सहज भाव से पूछा
"क्या राजा आपके शरीर को जब्त कर लेंगे ?" "शरीर को कैसे जब्त कर सकते हैं ?" "और मन को ?" सेठानी ने पुनः प्रश्न किया।
साहूकार पत्नी के प्रश्नों पर अधिकाधिक क्रुद्ध होता हुआ बोला-"तुम कैसे वाहियात प्रश्न कर रही हो ? कोई मन को भी जब्त कर सकता है क्या ?"
सेठानी हँस पड़ी और बोली-"फिर आपको किस बात की चिन्ता है ? राजा धन-दौलत ले लेंगे जो कि आती जाती ही रहती है। पर आपके हृदय में जो संतोष रूपी धन है उसे कौन ले सकता है, और उसके होते हुए भी आप घोर दरिद्र क्यों कहलाएँगे ? बल्कि धन के न रहने पर तो संतोष धन स्वयं बढ़ जाएगा और अपने साथ ही वैराग्य, त्याग, समभाव एवं सहिष्णुता आदि अनेक सद्गुणों को जन्म देगा । अत: मैं तो समझती हूँ कि इस बाह्य धन के जब्त हो जाने से आप अधिक आत्म-धनी बन जाएँगे।"
पत्नी की इन बातों को सुनकर साहूकार की आँखें खुल गयीं और परम संतुष्टिपूर्वक उसने स्वयं भी अपने धन को गरीबों में वितरण करने में सहायता दी। अंगुत्तर निकाय में भी सच्चे धन की परिभाषा देते हुए कहा गया है
सद्धाधनं, सीलधनं हिरि ओतप्पियं धनं, सुतधनं, च चागो च, पज्जावे सत्तमं धनं । यस्स एते धना अत्थि, इत्थिया पुरिसस्स वा,
अदलिदोति तं आहु अमोघं तस्स जीवितं ॥ अर्थात्-जिन व्यक्तियों के पास श्रद्धा, शील, लज्जा, लोकापवाद का भय, श्रुत, त्याग एवं प्रज्ञा रूपी धन है, वे ही सच्चे धनी हैं और उन्हीं का जीवन सफल है।
(१) श्रद्धा-श्लोक के अनुसार सर्वप्रथम श्रद्धा को धन बताया गया है और वास्तव में ही जिस व्यक्ति का वीतराग के वचनों में पूर्ण विश्वास होता है और जो बड़े से बड़ा संकट आने पर भी अपने साधना-पथ से विचलित नहीं होता वह सच्चा धनी है । कामदेव एवं आनन्द आदि अनेक श्रावक ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपने अपार धन को भी धन न समझकर नाना परिषहों के सामने आने पर भी धर्म से मुंह नहीं मोड़ा एवं धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा का परिचय दिया।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org