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पकवान के पश्चात् पान
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गया । ज्ञानाभ्यास करने के पश्चात् उसने विनयपूर्वक अपने गुरु से घर जाने की इजाजत मांगी और गुरुजी ने हार्दिक आशीर्वाद एवं मंगलकामना के साथ उसे विदा किया ।
शिष्य वहाँ से रवाना हो गया और मार्ग पर बढ़ा । पर रास्ते में एक जंगल आया और वहाँ के सुनसान रास्ते पर जब वह बढ़ा तो किसी ने पीछे से उसकी गर्दन पकड़ ली और कहा
"निकालो, जो कुछ तुम्हारे पास हो !"
अपने घर जाने वाले विद्वान शिष्य ने यह सुनकर गर्दन मोड़ी और तनिक भी घबराये बिना उस व्यक्ति की ओर देखा। दोनों की नजरें चार हुईं, पर दोनों ही एक-दूसरे को देखकर अवाक् रह गए। जंगल में मिलने वाला व्यक्ति और कोई नहीं, वरन् वही दूसरा विद्यार्थी था जो महात्मा जी के नालायक शब्द को गाली समझकर क्रोध के मारे चलता बना था और अब डाकू बन गया था। उसे देखकर विद्वान शिष्य बोला
"भाई ! यह क्या ? तुम तो ज्ञानाभ्यास के लिये आए थे पर वहाँ से भाग कर डाकू बन गये ?"
"और क्या करता ? गालियाँ देने वाले गुरुजी से भला क्या सीखा जा सकता था ?" डाकू बन जाने वाला व्यक्ति बोला।
__इस पर विद्वान व्यक्ति बोला- "भाई ! गुरुजी ने उस समय हमें गाली नहीं दी थी। अपनी बुरी आदतों के कारण वास्तव में ही हम उस समय ज्ञानप्राप्ति के लायक नहीं थे। गुरुदेव ने सत्य कहा था। पर खेद की बात है कि तुमने सत्य को सहन नहीं किया और वहां से भागकर आत्मा का पतन करने वाले इस मार्ग को अपना लिया। किंतु, मैंने गुरु की सत्य बात का बुरा नहीं माना और उसे आत्म-हितकर मानकर अपने आपको बदलने का प्रयत्न किया। फल यह हुआ कि मुझे गुरुदेव ने अब तक ज्ञानाभ्यास कराया है, और अब उनकी इजाजत लेकर ही घर जा रहा हूँ।" ___ यह सुनकर उस डाकू को बड़ा पश्चात्ताप हुआ। पर फिर उससे क्या हो सकता था, समय बीत चुका था और उसके दुर्गुणों ने उसे पापी व अपराधी बनाकर ही छोड़ा था। __बन्धुओ ! इस उदाहरण से आप समझ गये होंगे कि सत्य कड़वा जरूर होता है किन्तु उसी प्रकार हितकर भी होता है जैसे कड़वी दवा कुछ देर मुंह को कड़वा बना देती है, पर ज्वर का नाश करके शरीर को स्वस्थ कर देती है।
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