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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
अनेकानेक बार मरना पड़ता है । इसीलिए महापुरुष, सन्त या गुरु सत्य कहकर मानव को एक बार थोड़ी पीड़ा पहुँचाकर भी उसे जन्म-जन्म के दुःखों से बचाने का प्रयत्न करते हैं । एक छोटा-सा उदाहरण है-- तुम नालायक हो
किसी महात्मा के पास दो छात्र ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा से आये और उनसे ज्ञान-दान देने के लिए प्रार्थना की।
महात्माजी ने कहा-"तम यहीं आश्रम में ठहरो, मैं दो-चार दिन बाद तुम्हें बताऊँगा कि मैं तुम्हें अपने शिष्य के रूप में रखू गा या नहीं।"
दोनों शिक्षार्थी वहाँ ठहर गये । महात्माजी ने उनसे कुछ नहीं कहा और उन दोनों के क्रिया-कलापों की चुपचाप परीक्षा करते रहे । दोनों छात्र अज्ञानी ती थे ही, साथ ही कुसंगति में रहने के कारण आचरणहीन भी थे। कभी वे साथ में लाई हुयी बीड़ियाँ पीते, कभी ताश खेलते, कभी आपस में लड़ते हुए एक-दूसरे को गालियाँ देते और कभी-कभी पत्थर आदि मारकर पशु-पक्षियों को परेशान करते।
__यह सब देखते हुए ठीक चार दिन बाद महात्माजी ने उन दोनों को अपने पास बुलाया और कहा___"तुम लोग नालायक हो, अपने आपको बदल सको तो यहाँ रहो अन्यथा चले जाओ !"
महात्माजी की यह बात सुनते ही दोनों शिक्षार्थी पलभर के लिए अवाक् हो गये । किन्तु अगले ही क्षण उनमें से एक आगबबूला होकर बोला-"आप गालियाँ दे रहे हैं ? मैं आपके पास नहीं रह सकता।" यह कहकर चला गया । __ पर दूसरा शिक्षार्थी महात्माजी की बात को सुनकर कुछ देर के लिए सोच-विचार में डूब गया और कुछ देर पश्चात् उनके चरण पकड़कर बोला"गुरुदेव ! आपने सत्य कहा है कि मैं अभी नालायक हूँ, ज्ञान ज्ञाप्ति के लायक नहीं । किन्तु आज से मैं अपने आपको लायक बनाने का प्रयत्न करूंगा । कृपा करके मुझे अपने पास रहने दीजिए।"
महात्माजी ने प्रसन्न होकर स्वीकार करते हुए उत्तर दिया- "वत्स ! तुम खुशी से यहाँ रहो मुझसे जितना बनेगा तुम्हें आत्म-ज्ञान प्रदान करने का प्रयत्न करूंगा।"
परिणाम यह हुआ कि गुरु की एक सच्ची बात सुनकर ही उसने अपने आपको बदल डाला और कुछ समय में ही ज्ञानी तथा योग्य पुरुष बन
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