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________________ मोक्ष गढ़ जीतवा को ३५३ हाँ, तो मैं भजन के अनुसार यह बता रहा था कि प्राणी को सर्वप्रथम बड़े ध्यान से ज्ञान हासिल करना चाहिए, तभी वह सच्चे मायने में इन्सान बन सकेगा । यह बात चेतन को सुमति के द्वारा कही गई है । afa लोग उद्बोधन में शिक्षा के साथ-साथ मनोरंजकता भी लाते हैं । इसी के अनुसार वे चेतन रूपी राजा की सुमति और कुमति नामक दो रानियाँ कहते हैं । आप जानते हैं कि जिस प्रकार सभी पुरुष एक सरीखे नहीं होते, उसी प्रकार सभी स्त्रियाँ भी एक जैसी नहीं होतीं । कोई सती-साध्वी एवं आचारपरायणा होती है तथा कोई कुबुद्धि की अधिकारिणी होने के कारण पति को भी मार्गगामी बनाने का प्रयत्न करती हैं । चेतन राजा की भी ऐसी ही दो प्रकार की रानियाँ हैं । एक है – कुमति, जो उसे भोग-विलास एवं विषय विकारों की ओर आकर्षित करती हुई मूढ़ बनाकर संसार में भटकाती है और दूसरी, जो कि सुमति है, वह सदा अपने जीवात्मा रूपी पति को नेक सलाह देकर धर्म के मार्ग पर चलाने का प्रयत्न करती है ताकि उसका संसार में आवागमन करना रुक जाये । सुमति ही चेतन को ज्ञान-प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित करती है तथा आत्मा के ज्ञान, दर्शन एवं चारित्ररूप रत्नत्रय की पहचान कराते हुए उसे धर्म के कल्याणकारी मार्ग पर चलने की क्षमता प्रदान करती है । वह बड़े आग्रहपूर्वक बार-बार या प्रतिपल यह कहती रहती है- " राजन् ! तुम इन कषायों से, विषय-विकारों से तथा राग-द्वेषादि आत्मा के समस्त शत्रुओं से घोर युद्ध करके उन्हें पराजित करो और मोक्ष रूपी किला अपने कब्जे में करलो । ऐसा करने पर ही इस संसार में तुम्हारा आवागमन यानी जन्म-मरण मिटेगा और वह शाश्वत सुख हासिल होगा जो सदा आठों पहर बना रहेगा । दुःख का लेशमात्र भी फिर तुम्हें आशान्त नहीं बनायेगा और न ही किसी प्रकार की उपाधि पीड़ा पहुँचायेगी । पर तुम मेरी बात या मेरी प्रार्थना मानो और अवश्य ही उस पर अमल करो !” जो जीवात्मा सुमति की इस सीख को मान लेता है वह संसार-मुक्त होकर सदा के लिए दुःखों से छूट जाता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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