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________________ ३३६ आनन्द प्रवचन : सातवां भाग है, गर्दन के हिलने से घन्टी बजती रहती है । यह रुकता है तो घन्टी बजना बन्द हो जाता और मुझे अन्दर ही इसके रुकने का पता चल जाता है।" वकील साहब क्षणभर विचार करते रहे और फिर बोले- "अच्छा यह बताओ कि बैल चलना छोड़ दे और एक जगह खड़े-खड़े ही गर्दन हिलाकर घन्टी बजाता रहे तो तुम कैसे जानोगे कि वह रुक गया है ?" "यह कोई वकील तो है नहीं, साहब, जो जाल रचकर मुझे बेवकूफ बनाएगा। यह पशु है अतः इसमें इतनी चतुराई कहाँ ?" तेली ने सहजभाव से उत्तर दे दिया। वह नहीं जानता था कि उससे प्रश्न करने वाला वकील ही है। किन्तु वकील तेली की बात सुनकर बहुत शर्मिन्दा हुआ और समझ गया कि वास्तव में ही तेली विश्वासपूर्वक बैल को चलाता है, उसे उसके चलते रहने में शंका नहीं होती ! क्योंकि बैल में कपट-भावना नहीं हो सकती। यह सब तो मनुष्यों के काम हैं । ... वस्तुतः मानव न जाने कितने फरेब, जालसाजी, धोखेबाजी और कपटक्रियाएँ कर सकता है, क्योंकि उसमें सरलता नहीं होती। वह भगवान के वचनों में अविश्वास करता है तथा गुरुओं के छल-छिद्र भी ढूंढ़ता रहता है । किन्तु ऐसा करने से उसका कोई लाभ नहीं होता उलटे नुकसान होता है । अगर वह वीतराग-वाणी पर विश्वास करके चले तो सहज ही अपनी आत्मा को निष्कलुष और उन्नत बनाता हुआ कल्याण के मार्ग पर चल सकता है । पर अगर सन्देह की आग उसके हृदय में धधक जाती है तो वह सम्पूर्ण आत्म-गुणों को नष्ट करके मनुष्य को मिथ्यात्व, जो कि पाप का मार्ग है, उस पर डाल देती है। परिणाम यह होता है कि जीव मोक्ष-धाम तक कभी नहीं पहुंच पाता, मार्ग में ही भटक जाता है । अतः मुमुक्षु को शंकारहित होकर श्रद्धा के साथ यथाशक्य धर्माराधन करना चाहिए। कहा भी है जं सक्कइ तं कीरइ, जं सक्कइ तयम्मि सद्दहणा। सदहमाणो जीवो, वच्चड अयरामरं ठाणं ॥ -धर्म संग्रह २-२१ अर्थात्-जिसका आचरण हो सके, उसका आचरण करना चाहिए एवं जिसका आचरण न हो सके, उस पर श्रद्धा रखनी चाहिए । धर्म पर श्रद्धा रखता हुआ जीव भी जरा एवं मरणरहित मुक्ति का अधिकारी बनता है। गाथा में कितनी सुन्दर बात कही गई है ? इसमें कहा है कि जीव धर्मा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004010
Book TitleAnand Pravachan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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