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सुनकर सब कुछ जानिए
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चरण न करता हुआ भी अगर धर्म पर श्रद्धा रखे तो संसार से मुक्त हो सकता है । पर भाइयो ! आप उस वकील की भाँति न सोचें कि कोल्हू का बैल खड़ाखड़ा घन्टी बजाता रहे तब भी मालिक को धोखा दे सकता है। बैल में कपटभावना नहीं होती, अतः अगर वह खड़ा हो जाय और जीव-जन्तुओं के काटने से उसकी गर्दन हिलती रहे साथ ही घन्टी भी बजती रहे तो भी वह क्षम्य है; क्योंकि उसकी भावना केवल घन्टी बजाते रहकर मालिक को धोखा देने की नहीं है। वह या तो सहजभाव से या थकावट के कारण खड़ा होगा और जीव-जन्तुओं के परेशान करने से घन्टी भी बज जायेगी।
पर, मनुष्य अगर प्रमाद के कारण और दिखावे के लिए धर्मक्रिया मन, वचन और कर्म इन तीनों के साथ न करे तो वह क्षम्य नहीं है। वह मन को धर्म-क्रिया से परे रखे तथा सांसारिक विषयों में उलझाये रहे और लोगों को तथा भगवान को मन्दिर में घन्टी बजा-बजाकर, आरती घुमा-घुमाकर तथा जबान से भवन गुजाता हुआ पूजा-पाठ के स्तोत्र पढ़-पढ़कर धोखा देना चाहे तो स्वयं ही धोखा खायेगा क्योंकि कर्म उसके दिखावे में न आकर उसकी आत्मा को घेर ही लेंगे।
शास्त्र की गाथा में धर्माचरण न कर पाने पर भी धर्म पर श्रद्धा रखने के लिए कहा है कि इससे भी जीव जन्म-मरण से मुक्त हो सकता है। पर उसका धर्माचरण या धर्म-क्रिया न करना तभी चल सकता है, जबकि मनुष्य किसी घोर व्याधि से पीड़ित हो, शारीरिक अंगों की अपूर्णता आदि हो अथवा वृद्धावस्था के कारण अत्यधिक निर्बलता यानी शक्ति-हीनता हो । ऐसी स्थिति में अगर वह धर्म-क्रिया न करके भी अपने सम्पूर्ण अन्तःकरण से अपनी अयोग्यता के लिए खेद करता हुआ धर्म पर पूर्ण आस्था रखे और मन से कभी विचलित न हो तो अपनी शुद्ध भावनाओं का पूरा लाभ उठा सकता है ।
इसलिए बन्धुओ, हमें वकील की तरह आगम के शब्दों को नहीं पकड़ना है कि इसमें धर्माचरण न करने पर भी संसार से मुक्त होना लिखा है अतः आचरण की क्या आवश्यकता है ? हमें यथाशक्य जीव-अजीवादि तत्त्वों पर चिंतनमनन करना है, एकत्व-अन्यत्वादि भावनाओं को भाना है तथा अपनी धर्मक्रियाओं को दिखावे की न बनाकर आन्तरिक श्रद्धासहित सम्पन्न करना है । ऐसा करने पर ही हम शास्त्र-श्रवण या स्वाध्याय का लाभ उठा सकेंगे तथा पाप के मार्ग से परे रहकर कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो सकेंगे।
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