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आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग
_ "क्यों भाई, यह डेरा उठाकर कहाँ लिए जा रहे हो ?"
यात्री कुछ झुंझलाता हुआ बोला--"किसी गाँव में जाकर निवास करना है । क्या यहीं तुम्हारे गाँव में मैं भी रह सकता हूँ ?" ।
वृद्ध ने उसके प्रश्न का उत्तर न देते हुए स्वयं ही पुनः प्रश्न किया"पहले यह तो बताओ कि तुम्हारे गाँव के व्यक्ति कैसे हैं ?"
यात्री गुस्से से बोला- "सबके सब नीच और गँवार हैं । एक दिन भी वहाँ रहने की इच्छा नहीं होती।"
वृद्ध व्यक्ति ने गम्भीरता से कुछ क्षण विचार किया और उत्तर दिया"भाई, मेरे इस गाँव के व्यक्ति तो तुम्हारे गाँव के व्यक्तियों से भी बुरे, पूरे राक्षस हैं । एक दिन भी तुम्हें टिकने नहीं देंगे।"
यह सुनकर यात्री क्रोध से भुन-भुनाता हुआ आगे चल दिया । पर संयोगवश थोड़ी ही देर में एक और व्यक्ति अपना सामान लिये हुए आया और उसी पेड़ के नीचे कुछ देर के लिए ठहर गया ।
वृद्ध व्यक्ति ने उससे भी उसके गाँव का नाम और यात्रा का कारण पूछ लिया। __ व्यक्ति ने बड़े विनय से अपने गाँव का नाम बताया और पूछा- “दादा ! क्या मैं आपके गाँव में रह सकता हूँ ?"
वृद्ध व्यक्ति ने जब गाँव का वही नाम सुना जहाँ से पहला व्यक्ति आया था, तब उसने कुतूहलपूर्वक उस दूसरे यात्री से भी पूछ लिया-"क्यों भाई ! तुम्हारे गाँव के लोग कैसे हैं ?"
प्रश्न सुनकर आने वाले दूसरे यात्री की आँखों में आँसू आ गये और वह गद्गद होकर बोला- “दादा ! मेरे गाँव के सभी लोग देवता स्वरूप हैं। उन्हें छोड़कर आने में मुझे अपार दुःख हुआ है, पर क्या करूँ रोजी-रोटी के लिए गाँव छोड़ना पड़ा है। जब कुछ समय में यह समस्या हल हो जाएगी तो मैं पुनः अपने गाँव में उन सज्जन व्यक्तियों के साथ ही रहूँगा।"
वृद्ध व्यक्ति ने यात्री की बात सुनकर पुन: गम्भीरता से कुछ सोचा और तब बोला-“भाई ! तुम मेरे इसी गाँव में चलकर जब तक इच्छा हो रहो, यहाँ के सब व्यक्ति तुम्हारा स्वागत करेंगे और तुम्हारी रोजी-रोटी की भी कुछ न कुछ व्यवस्था अवश्य हो जाएगी।”
बन्धुओ ! आप समझ गये होंगे कि यह उदाहरण हमें क्या बता रहा है ? इस लघुकथा में कहा गया है कि दो यात्री एक ही गाँव से, एक ही उद्देश्य को
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